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अर्थ - क्या कहे सो कहते हैं हुं यह अनादरमें है अनादरसे राजा बोले अरे तैं अबीभी जो मेरे प्रसादसे उत्पन्न भया सुख मानती है तो मैं तेरेको उत्तम वर परणाके बहुत धन देऊं ॥ ३३ ॥
| जइ पुण नियकम्मं चिय, मन्नसि ता तुज्झ कम्मुणाणीओ। एसो कुट्ठियराणो, होउ वरो किं वियप्पेण ३४
अर्थ — जो फिर अपने कर्महीको तैं मानती है तो तेरा कर्मोंनें लाया हुआ यह कुष्ठी तेरा वरराज होवो यहां विचारका कोई प्रयोजन नहीं है ॥ ३४ ॥
हसिऊण भणइ वाला, आणीओ मज्झकम्मणा जो उ । सो चेव मह पमाणं, राओ वा रंकजाओ वा ॥ ३५॥
अर्थ - यह राजाका बचन सुनके मदनसुंदरी बाला हसके कहे जो मेरा कर्म लाया है वही वर मेरे प्रमाण है राजा होवे या रंकका पुत्र होवे ॥ ३५ ॥
कोबंधेणं रन्ना, सो उंबरराणओ समाहूओ । भणिओ य तुममिमीए, कम्माणीओसि होसु वरो ॥३६॥
अर्थ —यह कन्याका बचन सुनके क्रोधान्ध राजाने उम्बर राजको अपने पासमें बुलाया और कहा क्या कहा सो कहते हैं तुमको इस कन्याके कर्म लाए हैं इस लिए इसका भर्तार होवो ॥ ३६ ॥
| तेणुत्तं नो जुत्तं, नरवर! बुत्तुं पि तुज्झ इय वयणं । को कणयरयणमालं, बंधइ कागस्स कंठमि ॥३७॥
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