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श्राद्धविधि प्रकरण:
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जितने नामांकित तीर्थ, स्वर्ग, पाताल और मनुष्यलोक में हैं, उन सबके दर्शन करने की अपेक्षा एक सिद्धाचल की यात्रा करे तो सर्व तीर्थों की यात्रा का फल पा सकता है।
पडिला भंते संधे दिठ्ठमदिठ्ठेअ साहू सत्तुंजे ।
कोण अठ्ठे, दिठ्ठे तगुणं होई ॥ ३ ॥
शत्रु पर श्री संघ का स्वामिवात्सल्य कर जिमावे तो मुनि के दर्शन का फल होता है, मुनि को दान देने से तीर्थयात्रा का फल मिलता है; तीर्थनायक के दर्शन किये पहले भी श्री संघ को जिमाने से क्रोड़ गुणा फल होता है और यदि तीर्थ की यात्रा करके जिमावे तो अनन्त गुणा फल प्राप्त होता है । नवकारसहिए पुरिमढेगासगं च आयानं ।
पुंडरियं समरंतो फलकखीकुणइ अभत्त ॥ ४ ॥
नवकारसी, पोरिसी, पुरीमढ़, एकासना, आयंबिल, उपवास, प्रमुख तप करते हुये यदि अपने घर बैठा हुआ भी तीर्थ का स्मरण करे तो, -
मद समदुवालसाण मासद्धमासखमणाणं । तिगरणसुद्धीलाइ सत्तुंजे संभरतोअ ॥ ५ ॥
नवकारसी से छट्टका, पोरिसी से अट्टम का, पुरीमढ से चार उपवास का, एकासनसे छह उपवास का, आंबिलसे पन्द्रह उपवास का और एक उपवास से मासक्षपण ( महीने के उपवास) का फल प्राप्त होता है । यानी पूर्वी तप करके घर बैठे भी - "शत्रुंजयाय नमः” इस पद का जाप करे तो पूर्वोक्त गाथा में बतलाया हुआ फल मिलता है ।
न वित्तं सुवण्णभूमि भूसणदाणेण अन्न तिथ्थसु ।
पाव पुण्णफलं पुआनमगेण सतुंजे ॥ ६ ॥
एक शत्रुंजय तीर्थपर मूलनायक की स्नात्र पूजा नमस्कार करने पर जो पुण्य उत्पन्न होता है सो पुण्य अन्य तीर्थोंपर सुवर्णभूमि तथा आभूषण का दान करने पर भी प्राप्त नहीं होता !
. धुवे पख्खुववासे मारूखमणं कपुर धुवंनि । कत्तियमासख्खवणं साहु पडिलाभीए लहइ ॥ ७ ॥
...इस. तीर्थपर धूप पूजा करे तो पंद्रह उपवास का फल मिलता है, यदि कपूर का धूप करे तो मासक्षपण • फल होता है और यदि एक भी साधु को अन्नदान दे तो कितने एक महीनों के उपवास का फल मिलता है- 1
: यद्यपि पानी के स्थान बहुत ही हैं तथापि सबसे अधिक समुद्र ही है वैसेही अन्य सब लघु तीर्थ है परंतु सबसे अधिक तीर्थ श्री सिद्धिक्षेत्र ही है । जिसने ऐसे तीर्थ की यात्रा करके स्वार्थ सिद्धि नहीं की ऐसे
मनुष्य
धनप्राप्ति से
क्या ? और बड़े कुटुम्ब से
"
के मनुष्यजन्म से क्या फायदा ? अधिक जीने से क्या
?