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षड्दर्शन समुञ्चय भाग-२, श्लोक-४५-४६, जैनदर्शन
बुद्धि होती है। जैसे पुरानी बावलीयां तथा राजमहल इत्यादि को देखकर "यह सुन्दर है" -- ऐसी बुद्धि होती है। परन्तु पृथ्वी आदि कार्यो में ऐसी बुद्धि नहीं होती है।
इसलिए पुरानी बावलीयां इत्यादि दृष्टांत में देखी हुइ कृतबुद्धि को उत्पन्न करनेवाला कार्यत्वहेतु पृथ्वी इत्यादि धर्मो में देखने को नहि मिलता है। इसलिए कार्यत्वहेतु असिद्ध है। उपरांत पृथ्वी आदि प्राकृतिक वस्तुओ को देखकर, ऐसा भी लगता नहीं है कि यह किसीने बनाया है।
समाधान : आपकी यह बात युक्त नहि है, क्योंकि आपने जो कहा कि पृथ्वी इत्यादि में कृतबुद्धि होती नहीं है। वह अकृतबुद्धि प्रामाणिक पुरुषो को होती है या अप्रमाणिक सामान्य पुरुषो को होती है ? वह जवाब आपको देना चाहिए ।
यदि आप कहोंगे कि "अप्रामाणिक सामान्य पुरुषो के द्वारा पृथ्वी आदि में कृतबुद्धि नहीं होती है इसलिए कार्यत्वहेतु असिद्ध है" तब तो सामान्य व्यक्ति को धूम और बाष्प (भाप) में भी निश्चित विवेक नहीं होता है। इसलिए उनकी दृष्टि से तो धूमादि सभी हेतु असिद्ध बन जायेंगे।
उपरांत प्रामाणिक पुरुषो को कार्यत्व हेतु असिद्ध नहीं है। क्योंकि कार्यत्व हेतु का बुद्धिमत्कर्तृत्व के साथ अविनाभाव उन्हों ने देखा हुआ है - स्वीकार किया हुआ है। इसलिए जैसे पर्वतादि में धूमादि को देखकर उसके साथ अविनाभाव से जुडे हुए वहन्यादि का निश्चय होता है। वैसे पृथ्वी आदि में कार्यत्व हेतु को देखने से उसके साथ अविनाभाव से जुड़े हुए बुद्धिमत्कर्तृत्व का भी निश्चय हो जाता है। इसलिए कार्यत्व हेतु असिद्ध नहीं है।
उपरांत जितने पदार्थ उत्पन्न होते है, वे सभी पदार्थ कृतबुद्धि का आत्मा में आविर्भाव करेंगे ही, वैसा नियम नहि है। जैसे एक चोरस गडहा खोदने के बाद पुनः भर दिया जाये तो उस समतल जमीन में, जिसने वह गडहा भरते हुए नहीं देखा, उसको कृतबुद्धि नहीं होगी। ___ उपरांत आप पृथ्वी आदि कार्यो में बुद्धिमत्कर्ता का अभाव, अनुपलब्धि से सिद्ध करते हो, वह योग्य नहीं है, क्योंकि जो वस्तु पहले देखी हो, उसकी उपलब्धि न होती हो, तो वस्तु का अभाव है, ऐसा व्यपदेश किया जाता है। परंतु नहि देखी हुइ वस्तु की अनुपलब्धि को आगे करके वस्तु के अभाव का व्यपदेश नहि किया जा सकता।
इस प्रकार जगत्कर्ता ईश्वर अदृश्य होने से उनका अनुपलब्धि से अभाव सिद्ध नहि किया जा सकता। अन्यथा पिशाचादिकी भी अनुपलब्धि होती है, इसलिए पिशाचादि का भी अभाव सिद्ध हो जायेगा। इसलिए पिशाचादि दिखते नहीं है, इतने मात्र से उसका अभाव सिद्ध नहीं होता है। वैसे ईश्वर दृश्य न होने मात्र से उसका अभाव सिद्ध नहि होता है।
यदि ईश्वर दृश्य हो और पृथ्वी आदि में कर्तृत्व रुप से दिखते न हो, तो ही पृथ्वी आदि के कर्ता ईश्वर नहीं है, ऐसा कहा जायेगा। परन्तु ईश्वर दृश्य ही नहीं है। इसलिए अदृश्य की अनुपलब्धि को आगे करके ईश्वर
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