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षड्दर्शन समुञ्चय भाग-२, श्लोक-४५-४६, जैनदर्शन
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रुप अदृष्ट, कालआदि को जानता है। इसलिए ईश्वर सर्वज्ञ है। ___ इस जगत के समस्तकार्यो के उपादानकारण पार्थिव, जलीय, तैजस, वायवीय स्वरुप चार प्रकार के परमाणु है। उन कार्यो के निमित्तकारण अदृष्ट, काल इत्यादि है। जगत के प्राणी भोक्ता है और शरीर इत्यादि भोग्य है। ___ इन उपादानकारणो को और सहकारिकारणो को न जाननेवाला (अनभिज्ञ) आत्मा क्षित्यादि कार्यो का कर्ता नहीं हो सकता । इसलिए क्षित्यादिकार्यो का कर्तृत्व हम जैसे लोग में संभवित नहिं होता है।
और उस ईश्वर के ज्ञानादि नित्य है और कुम्हारादि के ज्ञानादि अनित्य है। इसलिए ईश्वर के ज्ञानादि कुम्हारादि के ज्ञानादि से विलक्षण (अपूर्व) है।
जैसे एक कार्य करने में अनेक कर्मचारी काम करते हो, फिरभी वे सभी प्रधान कर्मचारी के नियंत्रण में हो तो ही कार्य सुन्दर होता है। वैसे जगत के समस्त क्षित्यादि कार्यो के कर्ता एक व्यक्ति के नियंत्रण के नीचे है। वह सर्वज्ञ ईश्वर है। इस तरह से ईश्वर में एकत्व सिद्ध हुआ।
दूसरी तरह से नाना (अनेक) कार्यकर्ता प्रधान सचिवो के अधीन होते है। प्रधान सचीव राजा को अधीन होते है। राजायें चक्रवर्ति को आधीन है। वह चक्रवति ईश्वर को अधीन है। इस प्रकार समग्र जगत के कार्यो का अधिष्ठाता सर्वशक्तिमान ईश्वर एक ही है। इस तरह से ईश्वर में एकत्व सिद्ध हुआ । (प्रश्न : सभी कार्यो का अधिष्ठाता एक ही हो, ऐसा आप किस तरह से कहते है ?)
उत्तर : जैसे महाप्रासादादि कार्य करने में एक सूत्रधार को परतंत्र स्थापत्यो की प्रवृत्ति (जगत में) प्रसिद्ध है। वैसे जगत के सभी कार्यो के अधिष्ठाता के रुप में ईश्वर की सिद्धि होती है।
शंका : यदि ईश्वर को एक तथा नित्य मानोंगे तो कार्यो में जो कादाचित्कत्व और विचित्रता दिखती है। उसका विरोध आयेगा । अर्थात् ईश्वर को एकस्वभाववाले तथा नित्य मानोंगे तो कुछ कार्य ग्रीष्म ऋतु में ही होता है, कुछ कार्य शीतऋतु में ही होता है । कुछ कार्य वर्षाऋतु में ही होता है। ऐसा जो कार्यो में कदाचित्कत्व दिखता है, वह संभवित नहीं बन सकेगा। और जगत में जो विचित्रतायें दिखती है वह भी संभवित नहीं बन सकेगी।
समाधान : जगत के कार्यो की जो विचित्रता और कार्यो में कादाचित्कत्व दिखता है, वह सहकारि कारणो की प्राप्ति के कादाचित्कत्व और विचित्रता के कारण है। कहने का मतलब यह है कि, अकेले ईश्वर से ही कार्य उत्पन्न नहिं होता, परंतु ईश्वर के सिवा अन्य भी सहकारिकारणो की अपेक्षा होती है। वे सब मिलकर कार्य उत्पन्न करते है। इसलिए ईश्वर एकरुप होने पर भी ईश्वर को सहकारि कारणो का जब समागम हो तब कार्य उत्पन्न करता है। इसके कारण से कार्यो में कादाचित्कत्व आता है। तथा सहकारि कारणो में विचित्रता होने से कार्यो में भी विचित्रता आती है।
शंका : जगत में दिखते हुए कार्यो में, उस कार्यो को होते हुए देखे गये न होने पर भी कार्य हो जाने के बाद "यह कार्य हो गया और बहोत सुन्दर है।" तथा "यह कार्य हुआ परन्तु सुन्दर नहि है।" ऐसी
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