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संस्कृत-व्याकरण में कारकतत्त्वानुशीलन
विवक्षा । अतः पाणिनि ने इस प्रकरण में विभिन्न कारकों की शेषत्व-विवक्षा के स्थलों का विस्तार से निरूपण किया है। ये वही स्थल हैं जो पाणिनि के समय में शेष-रूप में विवक्षित थे अर्थात् जिनमें क्रियायोग होने पर भी षष्ठी विभक्ति होती थी।
पाणिनि का कारक तथा विभक्ति-विषयक विचार इतना पूर्ण तथा सुव्यवस्थित है कि परवर्ती आचार्यों को इस विवेचन में पाणिनीय चिन्तन से सदैव दिशा-निर्देश मिला-वे आचार्य इसी सम्प्रदाय के हों या अन्य सम्प्रदायों के। चन्द्रादि इतर सम्प्रदायवालों ने पाणिनि के सूत्रों के आधार पर ही अपने सूत्रों की रचना की। ___ दाक्षायण व्याडि' दाक्षीपुत्र पाणिनि२ के मामा थे । इनका एक दार्शनिक ग्रन्थ 'संग्रह' नाम का था, जिसकी वैयाकरण-निकाय में पर्याप्त चर्चा थी, किन्तु दुर्भाग्यवश भर्तृहरि के समय तक इसका लोप हो गया था। इसके उद्धरण-मात्र यत्रतत्र बिखरे हुए मिलते हैं, जिनसे इस ग्रन्थ की विषय-वस्तु का ईषत् अनुमान होता है। इन उद्धरणों की व्यापकता हमें यह मानने को विवश करती है कि कारक तथा विभक्ति के विषय में भी इसमें विशद विचार हुआ होगा। बहुत संभव है कि इन विचारों को पतंजलि ने महाभाष्य में तथा भर्तृहरि ने वाक्यपदीय में समाविष्ट करने का प्रयास किया हो । जो कुछ भी हो, पर्याप्त प्रमाण-सामग्री के अभाव में सब कुछ कल्पना पर ही आश्रित है।
कात्यायन पाणिनि के आविर्भाव के शीघ्र पश्चात् प्रायः ४०० ई० पू० में कात्यायन ( नामान्तर-वररुचि ) हुए, जिन्होंने अष्टाध्यायी के प्रमुख सूत्रों पर उक्त, अनुक्त तथा दुरुक्त के विचार के रूप में अपने वार्तिक लिखे, जिनकी पूरी संख्या प्राय: ५००० है । कारक के सूत्रों से सम्बद्ध (सं० १०७४ से ११२९ तक ) ५६ वार्तिकों का निर्देश पतंजलि ने अपने भाष्य में किया है। इन वार्तिकों में सूत्र-सम्बन्धी अनेक आक्षेप तथा समाधान दिये गये हैं । यह समझना भ्रम है कि कात्यायन ने पाणिनि-सूत्रों का खण्डन किया है । वास्तविकता यह है कि भाषा के क्रमिक विकास के संदर्भ में कुछ संशोधन उन्होंने किये हैं। उदाहरणार्थ अपादान कारक में 'जुगुप्साविरामप्रमादानामुपसंख्यानम्' (सं० १०८९)-कुछ नियत धातुओं के योग में बौद्धापाय होने पर अपादान का विधान करता है । कुछ लोगों का विचार है कि महाभाष्य में उद्धत सभी वार्तिक कात्यायन के ही नहीं हैं। किन्तु यह भी सत्य है कि पतंजलि ने मुख्यतः कात्यायन के वार्तिकों को आधार मानकर ही अपना भाष्य लिखा।
विभक्ति के प्रकरण में भी वार्तिकों की एक बड़ी संख्या अष्टाध्यायी के सूत्रों की
१. 'शोभना खलु दाक्षायणस्य सङ्ग्रहस्य कृतिः' । २. 'दाक्षीपुत्रस्य पाणिनेः' । ३. युधिष्ठिर मीमांसक, सं० व्या० शा० इति० १११७९ । ४. युधिष्ठिर मीमांसक, सं० व्या० शा० इति० १।२९३ ।
-भाष्य २।३।६६ -भाष्य १३१२०