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सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका पोठिका
साका, अर जघन्य आदि स्थितिबंध विर्षे सादि नैं आदि देकर संभवपने का, अर विशुद्ध-संक्लेशपरिणामनि जैसे जघन्य-उत्कृष्ट स्थितिबंध होय ताका, अर पाबाधा के लक्षण का, मोहादिक की पाबाधा के काल का, आयु की आबाधा के विशेष का, तहां प्रसंग पाइ देव, नारकी, भोगभूमियां, कर्मभूमियांनि के प्रायुबंध होने के समय का, उदीर्ण अपेक्षा आबाधाकाल के प्रमाण का, प्रसंग पाई अचलावली, उदयावली, उपरितन स्थिति विर्षे कर्मपरमाणु खिरने का, उदी के स्वरूप का, आयु वा अन्य कर्मनि के निषेकनि के स्वरूप का, अंकसंदृष्टिपूर्वक निषेकनि विर्षे द्रव्यप्रमाण का, तहाँ गुणहानि आदि का वर्णन है ।
___ बहुरि अनुभागबंध का व्याख्यान विर्षे प्रकृतिनि का अनुभाग जैसे. संक्लेश-विशुद्धिपरिणामतिकरि बंधे है ताका, पर जिस प्रकृति का जाके तीव्र वा जघन्य अनुभाग बंधे है ताका, हा प्रसंग म मनिपलर, परिवर्तन मध्यम परिणामनि के स्वरूपादिक का अर उत्कृष्टादि अनुभागबंध विर्षे सादि में प्रादि देकरि भेदनि के संभवपने का वर्णन है। बहुरि घातियानि विर्षे लता, दारु, अस्थि शैलभागरूप अनुभाय का, तहां देशघातिया स्पर्द्धकनि का मिथ्यात्व वि विशेष है ताका, अर जिन प्रकृतिनि विर्षे जेते प्रकार अनुभाग प्रवर्तं ताका, अर अधातियानि विर्षे प्रशस्त प्रकृतिनि का गुड़, खांड, शर्करा, अमृतरूप; अप्रशस्त प्रतिनि का निब, कांजीर, विष, हलाहलरूप अनुभाग का, अर इन प्रकृतिनि के तीन-तीन प्रकार अनुभाग प्रवत्तें, ताका वर्णन है।
. बहुरि प्रदेशबंध का कथन विषं एकक्षेत्र, अनेकक्षेत्रसंबंधी वा तहाँ कर्मरूप होने कौं योग्य-अयोग्यरूप; तिनविर्क भी जीव का ग्रहण की अपेक्षा सादि-अनादिरूप पुद्गलनि का प्रमाणादिक कहि, तहां जिन पुदगलनि कौं समयप्रबद्ध . विष ग्रहै है ताका, अर ग्रहे जे परमाणु तिनके प्रमाण कौं कहि तिनका पाठ वा सात मूल प्रकृतिनि विर्षे जैसे विभाग हो है ताका, तहां हीनाधिक विभाग होने के कारण का वर्णन है । पर उत्तर प्रकृतिनि विष विभाग के अनुक्रम का अर ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अंतराय विर्षे सर्वधाती-देशघाती द्रव्य के विभाग का, तहां प्रसंग पाइ मतिज्ञानावरणादि प्रकृतिनि विर्षे सर्वधाती-देशघाती स्पर्द्धकनि का, तहां अनुभागसंबंधी नानागुणहानि, अन्योन्याभ्यस्त-द्रव्य स्थिति-गुरणहानि का प्राण कहि, तहां वर्गरणानि का प्रमाण ल्याइ तिनविर्षे जहां सर्वधाती-देशघातीपना पाइए ताका वर्णनकरि च्यारि घातिया कर्मनि की उत्तर प्रकृतिनि वि कर्मपरमाणुनि के विभाग का वर्णन है ।
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