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गोम्मटसार कर्मकाण्ड सम्बन्धी प्रकरण
ॐ नमः । अथ कर्म (अजीवकांड) नामा महाअधिकार के नव अधिकार हैं। तिनके व्याख्यान की सूचना मात्र क्रम ते कहिए है -
तहां पहिला प्रकृतिसमुत्कीर्तन-अधिकार विर्षे मंगलाचरणापूर्वक प्रतिज्ञा करि प्रतिज्ञा के स्वरूप का, जीव-कर्म के संबंध का, तिनके अस्तित्व का, दृष्टांतपूर्वक कर्मपरमाणूनि के ग्रहण का, बंध, उदय, सत्त्वरूप कर्मपरमारणनि के प्रमाण का वर्णन है । बहुरि ज्ञानावरणादिक पाठ मूल प्रकृतिनि के नाम का, इन विर्षे धाती-प्रघाती भेद का, इनकरि कार्य हो है ताका, इनके क्रम संभवने का, दृष्टांत निरुक्ति लिए इनके स्वरूप का वर्णन है । बहुरि इनकी उत्तर प्रकृतिमि का कथन है। तहां पंच निद्रा का, तीन दर्शनमोह होने के विधान का, पंच शरीरनि के पंद्रह मंगनि का, विवक्षित संहननवाले देव-नरक गतिविर्षे जहां उपजें ताका, कर्मभूमि की स्त्रीनि के तीन संहनन हैं ताका, आताप प्रकृति के स्वरूप वा स्वामित्व का विशेष-व्याख्यान सा है।
बहुरि मतिज्ञानावरणादि उत्तर प्रकृतिनि के निरुक्ति लिए स्वरूप का वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ अभव्य के केवलज्ञान के सद्भाव विर्षे प्रश्नोत्तर का, सात धात, सात उपधातु का इत्यादि वर्णन है । बहुरि अभेद विवक्षाकरि जे प्रकृति गभित हो हैं, तिनका वर्णनकरि बंध-उदय-सत्तारूप जेती-जेती प्रकृति हैं, तिनका वर्णन है । बहुरि घातियानि विर्षे सर्वधाती-देशघाती प्रकृतिनि का, अर सर्व प्रकृतिनि विर्षे प्रशस्तअप्रशस्त प्रकृतिनि का वर्णन है । बहुरि अनंतानुबंधी आदि कषायनि का कार्य वा वासनाकाल का वर्णन है। बहुरि कर्म-प्रकृतिनि विर्षे पुद्गल विपाकी, भवविपाकी, क्षेत्रविपाकी, जीवविपाकी प्रकृतिनि का वर्णन है।
बहुरि प्रसंग पाइ संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय का वर्णनपूर्वक तीन प्रकार श्रोतानि का वर्णनकरि प्रकृतिनि के चार निक्षेपनि का वर्णन है। तहां नामादि निक्षेपनि का स्वरूप कहि नाम निक्षेप का अर तदाकार-मतदाकाररूप दोय प्रकार स्थापना निक्षेप का अर पागम-नोआगम रूप दोय प्रकार द्रव्य निक्षेप का; तहां नो
आगम के ज्ञायक, भावी, तद्व्यतिरिक्तरूप तीन प्रकार का, तहां भी भूत, भावी, वर्तमानरूप ज्ञायकशरीर के तीन भेदनि का, तहां भी च्युत, च्यावित, त्यक्तरूप भूत शरीर के तीन भेदनि का, तहां भी त्यक्त के भक्त, प्रतिज्ञा, इंगिनी, प्रायोपगमनरूप भेदनि का, तहां भी भक्त प्रतिज्ञा के उत्कृष्ट, मध्य, जघन्यरूप तीन प्रकारनि का पर तद्वयतिरिक्त नो-पागम द्रव्य के कर्म-नोकर्म भेदनि का, बहुरि भावनिक्षेप के प्रागम,