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सम्यज्ञानचन्द्रिका पीठिका ]
[ २६ प्रमाण वर्णन है । तहां उपशम, क्षपक थेरगीवाले निरंतर अष्ट समयनि विर्षे जेते जेते होइ ताका, वा युगपत् बोधितबुद्धि आदि जीव जेते-जेते होंइ ताका, अर सकल संयमीनि के प्रमाण का वर्णन है। बहुरि सात नरक के नारकी, भवनत्रिक, सौधर्मद्विकादिक देव, तिर्यच, मनुष्य ए जेते-जेते मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थाननि विर्षे पाइए, तिनका वर्णन है । बहुरि गुणस्थाननि विर्षे पुण्य जीव, पाप जीवनि का भेद वर्णन है । बहुरि पुद्गलीक द्रव्य पुण्य-पाप का वर्णन है । बहुरि पासव, बंध, संवर निर्जरा, मोक्षरूप पुद्गलनि का प्रमाण वर्णन है । ऐसें षट् द्रव्यादिक का स्वरूप कहि, तिनके श्रद्धानरूप सम्यक्त्व के भेदनि का वर्णन है।
__ तहां क्षायिक सम्यक्त्व के भेदनि का वर्णन है ।१ तहां क्षायिक सम्यक्त्व होने के कारण का, ताके स्वरूप का, ताकौं पाएं जेते भवनि वि मुक्ति होइ ताका, तिसकी महिमा का, अर तिसका प्रारंभ, निष्ठापन जहां होइ, ताका वर्णन है।
बहुरि बेदकसम्यक्त्व के कारण का वा स्वरूप का वर्णन है । बहुरि उपशम समयमय के स्वरूप का, कारण का, पंचलब्धि आदि सामग्री का, वा जाके उपशम सम्यक्त्व होइ ताका वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ आयुबंध भए पीछे सम्यवत्व, व्रत होने न होने का वर्णन है । बहुरि सासादन, मिश्र, मिथ्यारुचि का वर्णन है । बहुरि इहां जीवनि की संख्या का वर्णन विर्षे क्षायिक, उपशम, वेदक सम्यग्दृष्टिनि का अर मिय्यादृष्टि, सासादन, मिश्र जीवनि का प्रमाण वर्णन है । बहुरि नव पदार्थनि का प्रमाण वर्णन है...तहां जीव अर अजीव विर्षे पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल अर पुण्य-पाप रूप जीव, भर पुण्य-पाप
प रूप अजीव पर पासव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष इनके प्रमाग का निरूपण है। ... बहुरि अठारहवां संशी मार्गरणा अधिकार विर्क - संझी के स्वरूप का, संज्ञी असंशी जीवनि के लक्षण का वर्णन है । अर इहां संख्या का वर्णन वि संजी-प्रसंझी जीवनि का प्रमाण वर्णन है।
बहुरि उगरणीसवां प्राहारमार्गणा अधिकार विर्षे -- आहारक के स्वरूप वा निरुक्ति का अर अनाहारक जिनके हो है ताका, तहां प्रसंग पाइ सात समुद्धातनि. के नाम या समुद्धात के स्वरूप का, अर आहारक अनाहारक के काल का वर्णन है । बहुरि तहाँ आहारक-अनाहारक जीवनि का प्रमाग वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ प्रक्षेपयोगोद्धतिमिश्रपिंड इत्यादि सूत्र करि मिश्र के व्यवहार का कथन है ।
१. यह वाक्य छपी प्रति में मिलता है, किन्तु इसका अर्थ स्पष्ट नहीं होता।