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[ गोम्मतहार जीवका सम्बन्धी प्रकरण
पूर्वक वर्णन है । अर वर्तनाहेतुत्व काल के लक्षण का दृष्टांतपूर्वक वर्णन है । अर मुख्य काल के निश्चय होने का, काल के धर्मादिक को कारणपने का, समय, पावली आदि व्यवहारकाल के भेदनि का, तहां प्रसंग पाइ प्रदेश के प्रमाण का, वा अंतमुहूर्त के भेदनि का, वा व्यवहारकाल जानने को निमित्त का, व्यवहारकाल के प्रतोत, अनागत, वर्तमान भेदनि के प्रमाण का, वा व्यवहार निश्चय काल के स्वरूप का वर्णन है।
. बहुरि स्थिति अधिकार विर्षे सर्व अपने पर्यायनि का समुदायरूप अवस्थान का बर्णन है।
बहुरि क्षेत्राधिकार विषं जीवादिक जितना क्षेत्र रोकें, ताका वर्णन है। तहां प्रसंग पाइ तीन प्रकार प्राधार वा जीव के समुद्धातादि क्षेत्र का वा संकोच विस्तार शक्ति का वा पुद्गलादिकनि की अवगाहन शक्ति का वा लोकालोक के स्वरूप का वर्णन है ।
____ बहुरि संख्याधिकार विर्षे जीव द्रव्यादिक का वा तिनके प्रदेशनि का, वा व्यवहार काल के प्रमाण का, द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव मान करि वर्णन है ।
बहुरि स्थान स्वरूपाधिकार विर्षे (द्रव्यनि का वा ) द्रव्य के प्रदेशनि का चल, अचलपने का वर्णन है । बहुरि अणुवर्गणा आदि तेईस पुद्गल वर्गणानि का वर्णन है । तहां तिन वर्गणानि विर्षे जेती-जेती परमाणू पाइए, ताका आहारादिक वर्गणा ते जो-जो कार्य निपज है ताका जघन्य, उत्कृष्ट, प्रत्येकादि वर्गणा जहां पाईए ताका, महास्कंध वर्गणा के स्वरूप का, अणुवर्गणा आदि का वर्गग्गा लोक विर्षे जितनी जितनी पाइए ताका इत्यादि का वर्णन है । बहुरि पुद्गल के स्थूल-स्थूल प्रादि छह भेदनि का, वा स्कंध, प्रदेश, देश इन तीन भेदनि का वर्णन है ।
बहुरि फल अधिकार विर्षे धर्मादिक का गति प्रादि साधनरूप उपकार, जीवनि के परस्पर उपकार, पुद्गलनि का कर्मादिक वा सुखादिक उपकार, तिनका प्रश्नोत्तरादिक लिए वर्णन है। तहा प्रसंग पाइ कर्मादिक पुद्गल ही हैं ताका, पर कर्मादिक जिस-जिस पुद्गल वर्गणा ते निपजें हैं ताका, पर स्निग्ध-रूक्ष के गुणनि के अंशनि करि जैसे पुद्गल का संबंध हो है, ताका वर्णन है ! असें षट् द्रव्य का वर्णन करि तहां काल विना पंचास्तिकाय हैं, ताका वर्णन है। बहुरि नव पदार्थनि का वर्णन विर्षे जीव-अजीव का तौ षट् द्रव्यनि विर्षे वर्णन भया । बहुरि पाप जीव पुण्य जीवनि का वर्णन है । तहां प्रसंग पाइ चौदह मुरण-स्थाननि विर्षे जीवनि का