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ब्रह्मचर्य के लिए आपकी दृढ़ प्रतिज्ञा होनी चाहिए। इतना ही नहीं लेकिन प्रतिज्ञा प्योर, बिना लालच की, बिना घड़भांज (बार-बार प्रतिज्ञा करना और तोड़ना,जोड़ना और तोड़ना) वाली होनी चाहिए। जिसकी नीयत चोर है, उसका निश्चय है ही नहीं। जहाँ क्षत्रियपना होता है, वहाँ नीयत चोर नहीं होती।
जैसे विष की परख नहीं करते हैं, वैसे ही विषय की भी परख नहीं करनी चाहिए। उसे तो उगते ही दबा देना चाहिए।
उदय किसे कहते हैं? संडास लगी हो तो कोई चारा है? वैसा ही उदय में होता है। स्ट्रोंग निश्चय हो कि मुझे विषय में फिसलना ही नहीं है, उसके बावजूद भी अगर फिसल जाए तो उसे उदय कहते हैं। सावधानीपूर्वक रहना है, फिर दिक्कत नहीं होगी। जो पानी में डूबने लगे, वह बचने के लिए क्या कुछ नहीं करेगा? वैसा ही ब्रह्मचर्य के लिए होना चाहिए। दृढ़ निश्चय के सामने सभी अंतराय झुक जाते हैं!
ब्रह्मचर्य पालन करने का निश्चय होने के बावजूद विषय के विचार परेशान करें तब साधक को क्या सावधानी रखनी चाहिए? एक तो इन विचारों को अलग रखना चाहिए और उसमें तन्मयाकार नहीं होना चाहिए, हस्ताक्षर नहीं करना चाहिए। यह पिछला भरा हुआ माल है, जो कि फूट रहा है, ऐसा समझकर परेशान मत होना। उसमें तन्मयाकार मत होना। बड़ा प्रतिक्रमण कर लेना। विचार घेर लें तो क्या दिक्कत है? जो होली में हाथ नहीं डालता वह क्या जलेगा? कितने भी मच्छर मंडराएँ, लेकिन उन्हें उड़ाने में देर कितनी? सिर्फ जागते रहना पड़ेगा! जितनी जुदापना की जागृति रहेगी, उतना ही विषय को जीता जा सकेगा! ब्रह्मचर्य की पुस्तक बहुत ही हेल्पफुल रहेगी और उसे रोज़ पढ़ना।
४. विषय विचार परेशान करें तब... मन तो पोल मारने में एक्सपर्ट। वहाँ बहुत जागृति रखकर जीत जाना है!
जब ब्रह्मचर्य की सुंदर परिणतियाँ रहने लगें, तब भीतर बुद्धि वकालत किए बिना रहती ही नहीं कि विषय में क्या परेशानी है? उसे
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