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हो। अपना भाव चोखा होना चाहिए तो कुछ बिगड़ सके, ऐसा नहीं है। भगवान को केश लुंचन क्यों करना पड़ा? इसी वजह से कि स्त्रियाँ उनके रूप को देखकर मोहित न हो जाएँ!
पहले के जमाने में मान में, कीर्ति में, पैसे में, सभी में मोह बिखरा हुआ था। अभी तो सारा मोह विषय में ही रहता है! फिर क्या कहा जा सकता है? एकावतारी बनना हो तो विषयमुक्त होना ही पड़ेगा। शूट ऑन साइट प्रतिक्रमण करके छूटा जा सकता है। अंदर रुचि का बीज पड़ा हुआ है, वह धीरे-धीरे पकड़ में आता है और उससे छूटा जा सकता है। रुचि की गाँठ अनंत जन्मों से अंदर पड़ी हुई है, जो कि कुसंग मिलते ही फूट निकलती है। इसलिए ब्रह्मचारियों का संग अति-अति आवश्यक
ब्रह्मचर्य के लिए संगबल की आवश्यकता है। कितना भी स्ट्रोंग निश्चय हो लेकिन कुसंग उसे तोड़ देता है! कुसंग या सत्संग मनुष्य में परिवर्तन ला सकता है!
३. दृढ़ निश्चय पहुँचाए पार निश्चय किसे कहते हैं कि भले ही कैसा भी लश्कर आए फिर भी उस पर ध्यान न दें। निश्चय डगमगाए ही नहीं। भाव और निश्चय में फर्क है। भाव में से अभाव हो सकता है लेकिन निश्चय नहीं बदल सकता। अभी जो ब्रह्मचर्य पालन कर रहे हैं, वह पूर्व जन्म में किए हुए निश्चय ओपन हो रहे हैं। जिस-जिस चीज़ का निश्चय किया है, वह प्राप्त होगा ही। निश्चय अगर ढीला हो तो टाइमिंग बदल जाता है।
निश्चय का स्क्रू दिन-रात टाइट करते ही रहना है। एक बार यदि निश्चय टूट गया तो फिर खत्म हो जाता है। अपने निश्चय को तोड़ता कौन है? अपना ही अहंकार। मूर्छित अहंकार। एक ही स्ट्रोंग अभिप्राय रहना चाहिए। उसमें छूट नहीं चलेगी।
निश्चय स्ट्रोंग रखने के लिए इतना सँभाल लो। एक तो किसी के सामने दृष्टि नहीं गड़ानी चाहिए, थ्री विज़न का तुरंत इस्तेमाल होना चाहिए और स्त्री का स्पर्श नहीं होना चाहिए। स्त्री स्पर्श ज़हरीला होता है। अगर
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