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इस जन्म में अक्रमज्ञान द्वारा विषयबीज से बिल्कुल निर्ग्रथ हुआ जा सकता है? दादाश्री कहते हैं कि 'हाँ, हो सकता है।' विषय का ज़रा सा भी ध्यान किया कि पूरा ज्ञान भ्रष्ट हो जाता I
मन-वचन-काया से जो ब्रह्मचर्य पालन करता है, वह शीलवान कहलाता है। उसके कषाय भी बहुत ही क्षीण हो चुके होते हैं । हमें ब्रह्मचर्य का बल रखना है । विषय की गाँठ का छेदन अपने आप ही होता रहेगा।
२. दृष्टि उखड़े, 'थ्री विज़न' से
चटनी देखना अच्छा लगता है ? खून, मांस देखना अच्छा लगता है? चटनी हरे खून की और मांस वगैरह लाल खून का ! ढका हुआ मांस गलती से खा लें, ऐसा हो भी सकता है, लेकिन खुला ? ! उसी तरह यह देह जो है, वह रेशमी चादर से लपेटा हुआ हाड़-मांस ही है न ? बुद्धि बाहर की सुंदरता ही दिखाती है जबकि ज्ञान आरपार, सीधा ही देखता है। इस आरपार दृष्टि को विकसित करने के लिए पूज्य दादाश्री ने थ्री विज़न का अद्भुत हथियार दिया है।
पहले विज़न में सुंदर स्त्री नेकेड दिखती है । दूसरे विज़न में स्त्री बगैर चमड़ी की दिखती है। तीसरे विज़न में पेट चीरा हुआ हो और उसमें आँतें, मल, मांस वगैरह सब दिखता है । सारी गंदगी दिखती है । फिर विषय उत्पन्न होगा ही नहीं न ? अंत में आत्मा दिखता है । जिस रास्ते द्वारा दादाश्री पार निकल गए, विषय जीतने का वही रास्ता वे हमें दिखाते हैं ! कृपालुदेव ने कहा है कि, 'देखत भूली टले तो सभी दुःखों का क्षय होगा ।'
सुंदर स्त्री को देखकर किसी पुरुष को खराब भाव हो जाएँ तो उसमें दोष किसका? क्या स्त्री का दोष कहलाएगा ? नहीं, इसमें स्त्री का ज़रा सा भी दोष नहीं है। भगवान महावीर का लावण्य देखकर कई स्त्रियों को मोह उत्पन्न होता था । लेकिन भगवान को कुछ नहीं छूता था ! स्त्रियों के उपयोग पर बहुत निर्भर करता है। स्त्रियों को ऐसे कपड़े, गहने या मेक-अप नहीं करने चाहिए कि जिसे देखने से पुरुषों को मोह उत्पन्न
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