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देखकर ही चलना। इसके बावजूद यदि दृष्टि गड़ जाए तो तुरंत ही दृष्टि फेर लेनी चाहिए और तुरंत ही प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए, वह मत चूकना।
सभी स्त्रियाँ कहीं आकर्षित नहीं करतीं। जिसके साथ हिसाब बंधा हुआ हो, वही आकर्षित करती है। इसलिए उसे उखाड़कर फेंक दो। कुछ से तो, जब सौ-सौ बार प्रतिक्रमण किए जाएँ, तब छूट पाएँगे।
प्रतिक्रमण करने के बावजूद भी यदि दृष्टि ज़्यादा बिगड़े तो फिर उपवास या ऐसा कोई दंड लेना चाहिए। जिससे कर्म न बंधे। सामान्य भाव से ही देखना चाहिए। चेहरे को एकटक नहीं देखना चाहिए। तभी तो शास्त्रों में ब्रह्मचर्य पालन करनेवाले को स्त्री की फोटो या मूर्ति तक भी देखने से मना किया गया है!
देहनिद्रा आ जाएगी तो चलेगा लेकिन भावनिद्रा नहीं आनी चाहिए। अगर ट्रेन सामने से आ रही हो तो वहाँ पर क्या कोई सोता रहेगा? ट्रेन तो मारेगी एक ही जन्म, लेकिन भावनिद्रा मार देगी अनंत जन्मों तक! जहाँ भावनिद्रा आएगी, वहाँ वह चिपकेगा। जहाँ भावनिद्रा आए, तब उसी व्यक्ति के शुद्धात्मा से ब्रह्मचर्य पालन करने की शक्ति माँगना कि, 'हे शुद्धात्मा भगवान, मुझे पूरे जगत् के प्रति ब्रह्मचर्य पालन करने की शक्ति दीजिए।' जहाँ मीठा लगता है, वहाँ भले ही कितनी भी जागृति रखने जाए, लेकिन जब कर्म का धक्का आता है, तो वहाँ सबकुछ भुला देता है! जहाँ गलगलिया (वृत्तियों को गुदगुदी होना, मन में मीठा लगना) हुआ कि तुरंत ही समझ जाना कि यहाँ फँसाव होगा।
जिसे सिर्फ आत्मा ही चाहिए, उसे फिर विषय कैसे हो सकता है?
अपनी माँ पर, बहन पर दृष्टि क्यों नहीं बिगड़ती? वह भी स्त्री ही है न? लेकिन वहाँ भाव नहीं किया है, इसलिए।
श्रीमद राजचंद्र जी ने ब्रह्मचर्य के बारे में बहुत ही सुंदर खलासा किया है, पद्य में। स्त्री को काष्ठ की पुतली मानो। विषय जीतने से पूरे जगत् का साम्राज्य जीता जा सकता है। ब्रह्मचर्य ही आत्मज्ञान के लिए पात्रता लाता है।
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