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जिनकी प्रशंसामें श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० ५५ (६९) में ये वाक्य दिये हुए हैं
श्रीधाराधिपभोजराजमुकुटप्रोताइमरश्मिन्छटा. छायाकुमपङ्कलिप्तचरणाम्भोजातलक्ष्मीधवः । न्यायाब्जाकरमण्डने दिनमणिशब्दाब्जरोधो मणिः ॥ स्थेयास्पण्डितपुण्डरीकतरणिश्रीमान्प्रभाचन्द्रमाः ॥ श्रीचतुर्मुखदेवानां शिष्यो धृष्यः प्रवादिभिः ।
पण्डितश्रीप्रभाचन्द्रो रुन्द्रवादिगजाकुशः ॥ इन परिचय वाक्योंसे मालूम होता है कि ये प्रभाचंद्र न्याय तथा व्याकरणके बहुत बड़े पंडित थे और इनके चरणकमल धाराधिपति भोजराजके द्वारा पूजित थे और इसलिये इन्हें राजा भोजके समकालीन अथवा विक्रमकी ११ वीं शताब्दीके उत्तरार्ध और १२ वीं शताब्दीके पूर्वार्धका विद्वान् समझना चाहिये।
(८) वे प्रभाचंद्र जो अविद्धकर्ण 'पद्मनंदि' सैद्धान्तिकके शिष्य 'कुलभूषण'के सधर्मा-और इसलिये उक्त पद्मनंदिके प्रसिद्ध नाम 'कौमारदेव'के शिष्य-थे और जिन्हें श्रवणबेल्गोलके ४० वें शिलालेखमें 'प्रथित तर्कग्रंथकार,. आदि विशेषणोंके साथ स्मरण किया है । यथा
शब्दाम्भोरुहभास्करः प्रथिततर्कग्रंथकारः प्रभा
चंदाख्यो मुनिराजपंडितवरः श्रीकुण्डकुन्दान्वयः॥ . ये आचार्य विक्रमकी प्रायः ११ वीं शताब्दीके विद्वान् थे।
(९) वे प्रभाचंद्र जिन्हें 'प्रमेयकमलमार्तड'की मुद्रित प्रतिके अन्तमें दिये हुए निम्न पद्यमें 'पद्मनन्दि सैद्धान्त'के शिष्य तथा ' रत्ननन्दि'के पदमें रत लिखा है, और उसके बादकी गद्यपंक्तियों में जिन्हें धारानिवासी तथा भोजदेव राजाके समकालीन विद्वान् सूचित किया है
" श्रीपद्मनन्दिसैद्धान्तशिष्योऽनेक गुणालयः।
प्रभाचंद्रश्चिरंजीयाद्रत्ननन्दिपदे रतः ॥ ... श्रीभोजदेवराज्ये श्रीमद्धारानिवासिना परापरपरमेष्ठिपदप्रणामार्जितामलपु-- ण्यनिराकृतनिखिलमलकलंकन श्रीमत्प्रभाचंद्रपंडितेन निखिलप्रमाणप्रमेयस्वरूपो-- योतपरीक्षामुखपदमिदं विवृतमिति ।"
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