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४. 'धर्मामृतं सतष्णः' इत्यादि पद्यकी टीकामें, 'ज्ञानध्यानपरः' पदकी व्याख्या करते हुए, नीचे लिखे दो पद्य उद्धृत किये गये हैं
अध्रुवाशरणे चैव भव एकत्वमेव च । अन्यस्वमशुचिस्वं च तथैवास्रवसंवरौ ॥१॥ निर्जरा च तथा लोको बोधिदुर्लभधर्मता।
द्वादशैता अनुप्रेक्षा भाषिता जिनपुंगवैः ॥२॥ ये दोनों पद्य 'पद्मनन्दि-उपासकाचार' के पद्य हैं, जो 'पद्मनन्दिपंचविंशति' में संगृहीत भी पाया जाता है। इस उपासकाचारके कर्ता श्रीपद्मनन्दि आचार्य पं० आशाधरजीसे पहले हो गये हैं। उन्हें विक्रमकी १२ वीं शताब्दीके उत्तरार्धका विद्वान् समझना चाहिये । वे उन शुभचन्द्राचार्य के शिष्य थे जिनका देहावसान शक सं० १०४५ (वि० सं० ११८० ) में हुआ है + । इनका बनाया हुआ 'एकत्वसप्तति' नामका भी एक ग्रंथ है जो 'पद्मनंदिपंचविंशतिका में 'एकत्वाशीति' के नामसे संगृहीत है । 'नियमसार'की पद्मप्रभ-मलधारिदेव-विरचित टीकामें इस ग्रंथके कितने ही पद्य, ' तथाचोक्तमेकत्वसप्ततौ' इस वाक्यके साथ, उद्धृत हैं और वे सब उक्त 'एकत्वाशीति' में ज्योंके त्यों पाये जाते हैं। 'एकत्वाशीति के निम्न पद्यमें भी इस ग्रंथका नाम 'एकत्वसप्तति' ही दिया है
एकस्वसप्ततिरियं सुरसिन्धुरुच्चः । श्रीपद्मनन्दिहिमभूधरत: प्रसूता। यो गाहते शिवपदाम्बुनिधिं प्रविष्टा
मेतां लभेत स नरः परमां विशुद्धिम् ॥ ७७ ॥ जान पड़ता है 'एकत्वसप्तति'की पृथक् प्रतियोंमें कोई विशेष प्रशस्ति भी । लगी हुई है जिसमें 'निम्ब' सामन्तको 'सामन्तचूडामणि' के तौर पर उल्लेखित किया है । इसीसे, — इंस्क्रिप्शन्स एट् श्रवणबेलगोल ' (एपिग्रेफिया कर्णाटिका, जिल्द दूसरी ) के द्वितीय संस्करण ( सन् १९२३ ) की प्रस्तावना
* पं० आशाधरजीने अपने अनगारधर्मामृतकी टीकाके ९ वें अध्यायमें, 'अत एव श्रीपद्मनन्दिपादैरपि सचेलतादूषणं दिङ्मात्रमिदमधिजगे' इस वाक्यके साथ आपके 'म्लाने क्षालनतः' इत्यादि पद्यको उद्धृत किया है जो पद्मनन्दिपंचविंशतिके अन्तर्गत 'यत्याचारधर्म' नामके प्रकरणमें पाया जाता है। . + देहावसानके इस समयके लिये देखो श्रवणबेल्गोलका शिलालेख नं० ४३ (११७)। । ___देखो, गांधी बहालचंद कस्तूरचंद धाराशिवकी ओरसे शक सं० १८२० में प्रकाशित 'पद्मनंदिपंचविंशति' ।
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