________________
समय-निर्णय ।
१८७
द्वलि, माघनंदि और धरसेनादिकका समय भी शामिल किया जा सकता है; क्योंकि त्रिलोकप्रज्ञप्तिमें अंगपूर्वैकदेशधारियोंके कोई खास नाम नहीं दिये, प्राकृत पट्टावली में इनके समय की गणना एकांगधारियोंके समय ( ५६६ से ६८३ तक ) में ही की गई है— अथवा यों कहिये कि इन्हें ही एकांगधारी बतलाया है— नन्दिसंघकी 'गुर्वावली'मैं माघनन्दीको 'पूर्वपदांशवेदी' लिखा है * और 'श्रुतावतार' में अर्हद्बलि, माघनन्दी तथा धरसेन नामके आचार्यौको अंगपूर्वी के एकदेशज्ञाता सूचित किया है । इसके सिवाय, श्रवणबेलगोल के शिला-लेख नं० १०५ से, जिसके पद्य ऊपर उद्धृत किये गये हैं, मालूम होता है कि पुष्पदन्त और भूतबलि अर्हद्वलिके शिष्य थे । इन्हीं पुष्पदन्त और भूतबलिको धरसेनने अपनी मृत्यु निकट देखकर बुलाया था और कर्मप्राभृत शास्त्रका ज्ञान कराया था। इससे अर्हद्वलि, माघनन्दि, धरसेन, पुष्पदन्त और भूतबाल, ये सब प्रायः एक ही समयके विद्वान् मालूम होते हैं । यह दूसरी बात है कि इनमें से कोई कोई एक दूसरेसे कुछ वर्ष पीछे तक भी जीवित रहे हैं, और समकालीन विद्वानोंमें ऐसा प्रायः हुआ ही करता है । बाकी 'ततः ' ' तदनन्तर' आदि शब्दोंके द्वारा जो इन्हें कहीं कहीं एक दूस
* यथा-- - 'श्रीमूल संघेऽजनि नन्दिसंघस्तस्मिन्बलात्कार गणोतिरम्यः । तत्राभवत्पूर्वपदांशवेदी श्रीमाघनन्दी नरदेववंद्यः ॥
X यथा - “सर्वांगपूर्व देशैकदेश वत्पूर्वदेशमध्यगते ।
Jain Education International
श्री पुण्ड्रवर्धनपुरे मुनिरजनि ततोऽर्हद्वल्याख्यः " ॥ ८५ ॥ " तस्यानन्तरमनगारपुंगवो माघनन्दिनामाभूत् । सोध्यं पूर्वदेश प्राकाश्य समाधिना दिवं यातः " ॥ १०२ ॥ "अप्रायणीय पूर्वस्थित पंचमवस्तुगतचतुर्थमहा—कर्मप्राभृतकज्ञः सूरिर्धरसेननामाभूत् ” ॥ १०४ ॥
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org