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परिशिष्ट ।
गया था कि इन्द्रनन्दिका तब अपने 'श्रुतावतार' में 'समन्तभद्रको तुम्बुलूराचार्यके बादका विद्वान् बतलाना ठीक नहीं है' उसको इस उल्ले- . खसे कितना ही पोषण मिलता है और इन्द्रनन्दिके उक्त उल्लेख (इ० पृ० १९० ) की स्थिति बहुत कुछ संदिग्ध हो जाती है । परंतु तुम्बुलूराचार्यको श्रीवर्द्धदेवसे पृथक् व्यक्ति मान लेनेपर, जिसके मान लेनेमें अभी तक कोई बाधा मालूम नहीं होती, इन्द्रनन्दीका वह उल्लेख एक मतविशेषके तौरपर स्थिर रहता है; और इस लिये इस बातके खोज किये जानेकी खास जरूरत है कि वास्तवमें तुम्बुलूराचार्य और श्रीवर्द्धदेव दोनों एक व्यक्ति थे या अलग अलग। ,
विबुध श्रीधरने समन्तभद्रकी सिद्धान्तटीकाको इन्द्रनन्दीके कथन ( ४८ हजार ) से भिन्न, ६८ हजार श्लोकपरिमाण बतलाया है, यह ऊपरके उल्लेखसे–'अष्टषष्ठिसहस्रप्रमिता' पदसे--बिलकुल स्पष्ट ही है, इस विषयमें कुछ कहनेकी जरूरत नहीं ।
(३ ) विबुध श्रीधरके 'श्रुतावतार ' से एक खास बात यह भी मालूम होती है कि भूतबलि नामा मुनि पहले 'नरवाहन' नामके राजा और पुष्पदन्त मुनि उनकी वसुंधरा नगरीके 'सुबुद्धि' नामक सेठ थे। मगधदेशके स्वामी अपने मित्रको मुनि हुआ देखकर नरवाहनने सेठ सुबुद्धिसहित जिन दीक्षा ली थी। ये ही दोनों धरसेनाचार्यके पास शास्त्रकी व्याख्या सुननेके लिये गये थे, और उसे सुन लेनेके बादसे ही इनकी · भूतबलि ' और 'पुष्पदन्त ' नामसे प्रसिद्धि हुई । भूतबलिने ' षट्खण्डागम' की रचना की और पुष्पदन्त मुनि · विंशति प्ररूपणा'के कर्ता हुए । यथा
१ इस प्रसिद्धिसे पहले इन दोनों आचार्योंके दीक्षासमयके क्या नाम थे, इस बातकी अभी तक कहींसे भी कोई उपलब्धि नहीं हुई।
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