Book Title: Ratnakarandaka Shravakachara
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 446
________________ स्वामी समन्तभद्रका शुद्धि-पत्र । पृष्ठ पंक्ति अशुद्ध शुद्ध जो गुणादि प्रत्ययको जो ठीक होनेपर गुणादि-प्रत्ययको उत्वलिका उत्कलिका कि किया है नामा नाम्ना " ८. २४ २२ सुष्ठ १२ १२ भवात् यही युक्त्यनुशासन २१ १८ १८ १९ कविनूतन मतिव्युत्पत्ति निश्चयात्मक सरस्वति श्वर्णीचकार साधन कलिकालमें आचार्यस्य उत्तीर्ण अनेक जिनैकगुणसंस्तुति अलंघ्यवीर्य गरल विष ददातीति भयात् प्रायः यही स्वयंभूस्तोत्र हुआ हो x) ( दूसरा फुटनोट पहले * ) छपना चाहिये था।) कविनूतन मतियुत्पत्ति निश्चायक सरस्वती वर्णीचकार कोई साधन कलिकाल ...आचार्यस्स उत्कीर्ण उनके जिनेन्द्रगुणसंस्तुति अलंघ्यवीर्या गरल ( विष) ददतीति श्री पुण्यात्रवचम्पू फलाः १८ ११ १४ १६ २४ भी २४ पुण्यस्रवचम्पू फल: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456