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पृष्ठ
पंक्ति
७५
१५
अशुद्ध कर्मफलको
कर्ममलको
१८
तषो
तृषो
सिवाय,
सिवाय दुःखोंकी सहनकर विद्यते समन्तभद्रका प्रवत्ति मुनिपरालिये ऊपरसे पुण्ड्रेन्द्र पुण्ड्रेन्द्र
दुःखोंको सहनका खिद्यते समन्तभद्रको प्रवृत्ति
मुनिपरलिये
.
ऊपर पुण्ड्रेन्दु
पुण्डरेन्दु
११७ १२५ १२८
उसंका पुण्ड्रेन्द्र इसका उसे समंतभद्रके साधारणं वाराहमिहिरो शककालममारण र्यवनपुरे
इन्दुपुर (श्लोक १) में उनका पुण्ड्रेन्दु इनका समंतभद्रको उसके साधारणं लक्षणं वराहमिहिरो शककालमपास्य यवनपुरे
"
मेचकः ॥ ३९ ॥
भिन्न हैं
१४.
मेचकाः ॥३२॥ भिन्न स्वरूपसे कोशंग्रंथोंमें परिचय १ टीकांश:
५४०
स्वस्वरूपसे कोशग्रंथों में इस पृषकी नं. परिचय की टिप्पणी टीकाशः...(१४० पृष्ठका
टिप्पणीका एक मंश है।
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