Book Title: Ratnakarandaka Shravakachara
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 447
________________ १०७ पृष्ठ पंक्ति ७५ १५ अशुद्ध कर्मफलको कर्ममलको १८ तषो तृषो सिवाय, सिवाय दुःखोंकी सहनकर विद्यते समन्तभद्रका प्रवत्ति मुनिपरालिये ऊपरसे पुण्ड्रेन्द्र पुण्ड्रेन्द्र दुःखोंको सहनका खिद्यते समन्तभद्रको प्रवृत्ति मुनिपरलिये . ऊपर पुण्ड्रेन्दु पुण्डरेन्दु ११७ १२५ १२८ उसंका पुण्ड्रेन्द्र इसका उसे समंतभद्रके साधारणं वाराहमिहिरो शककालममारण र्यवनपुरे इन्दुपुर (श्लोक १) में उनका पुण्ड्रेन्दु इनका समंतभद्रको उसके साधारणं लक्षणं वराहमिहिरो शककालमपास्य यवनपुरे " मेचकः ॥ ३९ ॥ भिन्न हैं १४. मेचकाः ॥३२॥ भिन्न स्वरूपसे कोशंग्रंथोंमें परिचय १ टीकांश: ५४० स्वस्वरूपसे कोशग्रंथों में इस पृषकी नं. परिचय की टिप्पणी टीकाशः...(१४० पृष्ठका टिप्पणीका एक मंश है। Jain Education International . For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456