Book Title: Ratnakarandaka Shravakachara
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 448
________________ १०८ पांत २२. १४२ १५८ अशुद्ध जैनेन्दसंज्ञ शिलालेखमें गृद्धपिच्छः सं० ९४ दोनों जैनेन्द्रसंझं शिलालेखोंमें गृध्रपिच्छः । सं० ४९ उन दोनों " । १५९ १६ १६११ . . :: . १८२ : : १६६ मिथ्या वह मिथ्या कौण्डकुन्दान्वय कोण्डकुन्दान्वय अभयणंदि अभ[य]णंदि उल्लेख उल्लेख भी पवयणभक्ति पवयणभत्ति १३३ १२३ भद्रबाहुस्स भद्दवाहुस्स १७ सं. १७ से श्रुतावतार इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार १९३ योगे पोगे १९४ उदपिसिदर उदयिसिदर भद्रबाहुका भद्रबाहु द्वितीयका ११८ नं० ३५० नं. १५ प्रस्तावना प्रकरण प्रस्ताव या प्रकरण श्रीमत्स्वामीसमंतभद्र श्रीमत्स्वामिसमंतभद्र सिद्धप्प.. सिद्धय्य विरचयत। विरचयता ___ माहात्म्यमतीन्दियं माहात्म्यमतीन्द्रियं ११. किमति किमिति • नोट-विन्दु-विसर्ग और विगम विहादिकी कुछ दूसरी ऐसी साधारण अशुदियोंको यहाँ देनेकी जरूरत नहीं समझी गई जो पढ़ते समय सहज ही में मालूम पड़ जाती हैं। ............... १७ १२८ २४ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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