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पांत २२.
१४२
१५८
अशुद्ध जैनेन्दसंज्ञ शिलालेखमें गृद्धपिच्छः सं० ९४ दोनों
जैनेन्द्रसंझं शिलालेखोंमें गृध्रपिच्छः । सं० ४९ उन दोनों
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१५९ १६ १६११
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१८२
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१६६
मिथ्या
वह मिथ्या कौण्डकुन्दान्वय कोण्डकुन्दान्वय अभयणंदि अभ[य]णंदि उल्लेख
उल्लेख भी पवयणभक्ति पवयणभत्ति १३३
१२३ भद्रबाहुस्स भद्दवाहुस्स १७ सं. १७ से
श्रुतावतार इन्द्रनन्दि-श्रुतावतार १९३
योगे
पोगे १९४
उदपिसिदर उदयिसिदर
भद्रबाहुका भद्रबाहु द्वितीयका ११८
नं० ३५०
नं. १५ प्रस्तावना प्रकरण प्रस्ताव या प्रकरण श्रीमत्स्वामीसमंतभद्र श्रीमत्स्वामिसमंतभद्र सिद्धप्प.. सिद्धय्य
विरचयत। विरचयता
___ माहात्म्यमतीन्दियं माहात्म्यमतीन्द्रियं
११. किमति किमिति • नोट-विन्दु-विसर्ग और विगम विहादिकी कुछ दूसरी ऐसी साधारण अशुदियोंको यहाँ देनेकी जरूरत नहीं समझी गई जो पढ़ते समय सहज ही में मालूम पड़ जाती हैं।
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