Book Title: Ratnakarandaka Shravakachara
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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________________ 116 15 युक्यनुशासन-श्रीमत्समन्तभद्रस्वामिकृत मूल और विद्यानन्दस्वामिकृत संस्कृतटीका / पृ० 196 / मू० // -) 16 नयचक्रसंग्रह-(१ श्रीदेवसेनसूरिकृत नयचक्र, 2 माइल धवलकृत नयचक्र, 3 श्रीदेवसेनसूरिकृत आलापपद्धति) पृष्ठसंख्या 194 / मू० // 3) 16 षट्प्राभृतादिसंग्रह-(० श्रीमत्कुदकुन्दस्वामीकृत षट्पाहुड़ और उसकी श्रुतसागरसूरिकृत संस्कृतटीका, 2 श्रीकुन्दकुन्दकृत लिंगप्राभृत,३ शीलप्राभृत, 4 रयणसार और 5 द्वादशानुप्रेक्षा संस्कृतछायासहित) पृष्ठसंख्या 492 / मू०३) प्रायश्चित्तसंग्रह-(१ इन्द्रनन्दियोगीन्द्रकृत छेदपिण्ड प्राकृत छायासहित, 2 नवतिवृत्तिसहित छेदशास्त्र, 3 श्रीगुरुदासकृत प्रायश्चित्तचूलिका, श्रीनन्दिगुरुकृतटीकासहित, 4 अकलंककृत प्रायश्चित्त ) पृष्ठ 200 / मू० 10) 19 मूलाचार-(पूर्वार्ध), श्रीवट्टकेरस्वामिकृत मूल प्राकृत, श्रीवसुनन्दिश्रमणकृत आचारवृत्तिसहित / पृ. 520 / मू० 2 // ), 20 भावसंग्रहादि-(१ श्रीदेवसेनहरिकृत प्राकृत भावसंग्रह छायासहित, 2 श्रीवामदेवपण्डितकृत संस्कृत भावसंग्रह, श्रीश्रुतमुनिकृत भावत्रिभंगी और 4 आस्रवत्रिभंगी ) पृ. 328 / मू० 2 / ) 21 सिद्धान्तसारादिसंग्रह-(१ श्रीजिनचन्द्राचार्यकृत सिद्धान्तसार 'प्राकृत, श्रीज्ञानभूषणकृत भाष्यसहित, 2 श्रीयोगीन्द्रदेवकृत योगसार प्राकृत, 3 अमृताशीति संस्कृत, 4 निजात्माष्टक प्राकृत, 5 अजितब्रह्मकृत कल्याणालोयणा प्राकृत, 6 श्रीशिवकोटिकृत रत्नमाला, 7 श्रीमाघनन्दिकृत शास्त्रसारसमुच्चय, 8 श्रीप्रभाचन्द्रकृत अर्हत्प्रवचन, 9 आप्तस्वरूप, 10 वादिराजश्रेष्ठीप्रणीत ज्ञानलोचनस्तोत्र, 11 श्रीविष्णुसेनरचित समवसरणस्तोत्र, 12 श्रीजयानन्दसूरिकृत सर्वज्ञस्तवनसटीक, 13 पार्श्वनाथसमस्यास्तात्र, 14 श्रागुणभद्रकृत चित्रबन्धस्तो, 15 महर्षिस्तोत्र, 16 श्रीपद्मप्रभदेवकृत पार्श्वनाथस्तोत्र, 17 नेमिनाथस्तोत्र, 18 श्रीभानुकीर्तिकृत शंखदेवाष्टक, 19 श्रीअमितगतिकृत सामायिकपाठ, 20 श्रीपअनन्दिरचित धम्मरसायण प्राकृत, 21 श्रीकुलभद्रकृत सारसमुच्चय, 22 श्रीशुभचन्द्रकृत अंगपण्णत्ति प्राकृत; 23 विबुधश्रोधरकृत श्रुतावतार, 24 शलाकाविवरण, 25 पं० आशाधरकृत कल्याणमाला ) / मू० 1 // ) / 22 नीतिवाक्यामृत-श्रीसोमदेवसूरिकृत मूल और अज्ञातपण्डितकृत संस्कृतटीका, विस्तृत भूमिका सहित / पृ० सं० 464 / मू० 1 // ) 23 मूलाचार-( उत्तरार्ध) श्रीवकेरस्वामीकृत मूल प्राकृत और श्रीवसु. नन्दि आचार्यकृत आचारवृत्ति / पृ० 340 / मू० 1 // ) मिलने का पता—जैनग्रन्थ-रत्नाकर कार्यालय, ठि. हीराबाग, बम्बई नं. 4. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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