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समय-निर्णय ।
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' आर्यदेव, ' आर्यदेव के पश्चात् गंगराज्यका निर्माण करनेवाले 'सिंहनन्दि' आचार्य और सिंहनन्दिके पश्चात् एकसंधि 'सुमति भट्टारक' हुए । इनके बाद 'कमलभद्र' पर्यंत और भी कितने ही आचायके नामों तथा कहीं कहीं उनके कामोंका भी क्रमशः उल्लेख किया । इस शिलालेखका कुछ अंश इस प्रकार है
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- श्रीवर्द्धमानस्वामिगल तीर्थं प्रवर्तिसे गौतम गणधरर् नेत्रज्ञनिगल अप्प मुणिगल सय् अवरिं चतुरंगुलऋद्धि प्राप्तर एनिसिद कोण्डकुन्दाचार्य्यरिं केलव- कालं योगे भद्रबाहुस्वामिगलिन्द् इत्त कलिकालवर्त्तनेयिं गणभेदं पुट्टिदुद् अवर अन्वयक्रमदिं कलिकालगणधरुं शास्त्रकर्त्तुगलम् एनिसिद समन्तभद्रस्वामिगल अवर शिष्यसंतानं शिवकोट्याचार्य्यर् अवरिं वरदत्ताचार्य्यर् अवरिं तत्वार्थ सूत्रकर्चुगल एनिसिद् आर्य्यदेवर अवरिं गंगंराज्यमं माडिद सिंहनन्द्याचार्य्यर् अवरिन्द् एकसंधिसुमतिभट्टारकर अवरिं । ....
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इस लेख परसे यह स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि जिन सिंहनन्दि आचाका गंगराज्यकी संस्थापना से सम्बंध है वे समन्तभद्रस्वामी के बाद हुए हैं । यद्यपि, इस शिलालेखमें कुछ आचार्यों के नाम आगे पीछे क्रमभंगको लिये हुए भी पाये जाते हैं— जिसका एक उदाहरण भद्रबाहु - स्वामीको कुन्दकुन्दसे कुछ काल बादका विद्वान् सूचित करना है-और इसलिये आचार्योंके क्रमसम्बंध में यह शिलालेख सर्वथा प्रमाण नहीं माना जा सकता; फिर भी इसमें सिंहनन्दिको समन्तभद्रके बादका
१ सिंहनन्दिके इस विशेषण : गंगराज्यम माडिद' का अर्थ लेविस राइसने who made the Ganga Kingdom दिया है- अर्थात् यह बतलाया है कि 'जिन्होंने गंगराज्यका निर्माण किया, ' ( वे सिहनन्दी आचार्य ).
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