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स्वामी समन्तभद्र।
तत्त्वार्थशास्त्र अथवा तत्त्वार्थसूत्रके नामान्तर हैं । इसीसे आर्यदेवको एक जगह 'तत्त्वार्थसूत्र' का और दूसरी जगह 'राद्धान्त' का कर्ता लिखा है * और पुष्पदन्त, भूतबल्यादि आचार्यों द्वारा विरचित सिद्धान्तशास्त्रोंको भी तत्त्वार्थशास्त्र या तत्त्वार्थमहाशास्त्र कहा जाता है । इन सिद्धान्त शास्त्रोंपर तुम्बुद्धराचार्यने कनड़ी भाषामें 'चूडामणि' नामकी एक बड़ी टीका लिखी है जिसका परिमाण इन्द्रनन्दि-'श्रुतावतार में ८४ हजार और 'कर्णाटकशब्दानुशासन ' में ९६ हजार श्लोकोंका बतलाया है । भेट्टाकलंकदेवने, अपने 'कर्णाटक शब्दानुशासन ' में कनड़ी भाषाकी उपयोगिताको जतलाते हुए, इस टीका का निम्न प्रकारसे उल्लेख किया है
"न चैष (कर्णाटक) भाषा शास्त्रानुपयोगिनी। तत्त्वार्थमहाशास्त्रव्याख्यानस्य षण्णवतिसहस्रपमितग्रंथसंदर्भरूपस्य चू. डामण्यभिधानस्य महाशास्त्रस्यान्येषां च शब्दागम-युक्तागमपरमागम-विषयाणां तथा काव्य-नाटक-कलाशास्त्र विषयाणां च बहूनां ग्रंथानामपि भाषाकृतानामुपलब्धमानत्वात् ।" * यथा-(१)"......अवरि तत्वार्थसूत्रकर्तुगल एनिसिद् आर्यदेवर..."
-नगरताल्लुकेका शि० लेख नं० ३५० । (२) “आचार्यवरर्यो यतिरार्यदेवो राद्धान्तकर्ता ध्रियतांस मूर्ध्नि।"
श्र० बे० शिलालेख नं० ५४ (६७)। १ ये 'अष्टशती' आदि ग्रंथोंके कर्तासे भिन्न दूसरे भट्टाकलंक हैं, जो विक्रमकी १७ वीं शताब्दीमें हुए हैं। इन्होंने कर्णाटकशब्दानुशासनको ई० सन् १६०४ ( शक १५२६ ) में बनाकर समाप्त किया है।
२ देखो, राइस साहबकी 'इंस्क्रिप्शंस ऐट श्रवणबेलगोल' नामकी पुस्तक, सन् १८८९ की छपी हुई।
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