________________
मुनि-जीवन और आपत्काल ।
१०१
और ३२० का मध्यवर्ती प्रायः एक शताब्दीका भारतका इतिहास बिलकुल ही अंधकाराच्छन्न है - उसका कुछ भी पता नहीं चलता । इससे स्पष्ट है कि भारतका जो प्राचीन इतिहास संकलित हुआ है वह बहुत कुछ अधूरा है । उसमें शिवकोटि जैसे प्राचीन राजाका यदि नाम नहीं मिलता तो यह कुछ भी आश्चर्यकी बात नहीं है । यद्यपि ज्यादा पुराना इतिहास मिलता भी नहीं, परंतु जो मिलता है और मिल सकता है उसको संकलित करनेका भी अभीतक पूरा आयोजन नहीं हुआ । जैनियोंके ही बहुतसे संस्कृत, प्राकृत, कनड़ी, तामिल और तेलगु आदि ग्रंथों में इतिहासकी प्रचुर सामग्री भरी पड़ी है जिनकी ओर अभी तक प्रायः कुछ भी लक्ष्य नहीं गया । इसके सिवाय एक एक राजाके कई कई नाम भी हुए हैं और उनका प्रयोग भी इच्छानुसार विभिन्न रूपसे होता रहा है, इससे यह भी संभव है कि वर्तमान इतिहास में ' शिवकोटि का किसी दूसरे ही नामसे उल्लेख हो * और वहाँपर यथेष्ट परिचय के न रहनेसे दोनों का समीकरण न हो सकता हो, और वह समीकरण विशेष अनुसंधानकी अपेक्षा रखता हो । परंतु कुछ भी हो, इतिहास की ऐसी हालत होते हुए, बिना किसी गहरे अनुसंधानके यह नहीं कहा जा सकता कि ' शिवकोटि ' नामका कोई राजा हुआ ही नहीं, और न शिवकोटिके व्यक्तित्वसे ही इनकार किया जासकता है ।
'
* शिवकोटिसे मिलते जुलते शिवस्कंदवर्मा ( पल्लव ), शिवमृगेश वर्मा ( कदम्ब ), शिवकुमार ( कुन्दकुन्दका शिष्य ), शिवस्कंदवर्मा हारितीपुत्र ( कदम्ब ), शिवस्कंद शातकर्णि ( आन्ध्र ), शिवमार (गंग), शिवश्री (आन्ध्र), और 'शिवदेव ( लिच्छिवि ), इत्यादि नामोंके धारक भी राजा हो गये हैं । संभव है कि शिवकोटिका कोई ऐसा ही नाम रहा हो, अथवा इनमें से ही कोई शिवकोटि हो ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org