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स्वामी समन्तभद्र ।
एक बात और भी यहाँ प्रकट कर देने योग्य है, और वह यह कि त्रिलोकसारकी उक्त गाथा में 'सगराजो' के बाद 'तो' शब्दका प्रयोग किया गया है जो ' ततः ' ( तत्पश्चात् ) का वाचक है - माधवचंद्र त्रैविद्यदेवविरचित संस्कृतटीकामें भी उसका अर्थ . " ततः ही किया गया है - और उससे यह स्पष्ट ध्वनि निकलती है कि शक राजाकी सत्ता न रहने पर अथवा उसकी मृत्युसे ३९४ वर्ष ७ महीने बाद कल्कि राजा हुआ; और चूंकि त्रिलोकप्रज्ञप्ति आदि ग्रंथोंसे कल्किकी मृत्युका वीरनिर्वाणसे एक हजार वर्ष बाद होना पाया जाता है * इस लिये उक्त ३९४ वर्ष ७ महीने में कल्किका राज्यकाल भी शामिल है, जो त्रिलोकप्रज्ञप्ति के अनुसार ४२ वर्ष परिमाण कहा जाता है । दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि इस गाथा में शक और कल्किका जो समय दिया है वह अलग अलग उनके राज्यकालकी समाप्तिका सूचक है । और इस लिये यह नहीं कहा जा सकता है कि शक राजाका राज्यकाल वीर निर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने बाद प्रारंभ हुआ और उसकी समाप्ति के बाद ३९४ वर्ष ७ महीने बीतने पर कल्किका राज्यारंभ हुआ । ऐसा कहने पर कल्किका अस्तित्वसमय वीरनिर्वाणसे एक हजार वर्ष के भीतर न रहकर
११०० वर्षके करीब हो जाता है और उससे एक हजारकी नियत संख्या में बाधा आती है । अस्तु । वीरनिर्वाणसे ६०५ वर्ष ५ महीने पर शक राजाके राज्यकालकी समाप्ति मान लेनेपर यह स्वतः मानना पड़ता है कि विक्रम राजाका राज्यकाल भी वीरनिर्वाणसे ४७० वर्षके अनन्तर ही समाप्त हो गया था, और इस लिये वरिनिर्वाण से ४७०
* देखो जैनहितैषी भाग १३, अंक १२ में ' लोकविभाग और त्रिलोकप्रज्ञप्ति ' नामका लेख ।
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