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समय - निर्णय ।
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कि उमास्वाति कुन्दकुन्दके शिष्य न होकर प्रशिष्य रहे हों और इसी से ' तदन्वये ' आदि पदोंके प्रयोगकी जरूरत पड़ी हो। इस तरह भी दोनों कितने ही अंशोंमें समकालीन हो सकते हैं और उमास्वातिके समयकी समाप्तिको प्रकारान्तरसे कुन्दकुन्दके समयकी समाप्ति भी कहा जा सकता है । शायद यही वजह हो जो उक्त पद्यमें उमास्वातिका समय बतलाकर पीछेसे ' कुन्दकुन्दस्तथैव च ' शब्दोंके द्वारा यह सूचित किया गया है कि कुन्दकुन्दका भी यही समय है, अर्थात् कुन्दकुन्द भी इसी समयके भीतर हो गये हैं। अस्तु, उक्त पट्टावली में उमास्वातिकी आयु ८४ वर्ष दी है और साथ ही यह सूचित किया है कि वे ४० वर्ष ८ महीने आचार्यपद पर प्रतिष्ठित रहे । यदि यह उल्लेख ठीक हो तो कहना चाहिये कि उमास्वाति प्रायः ४३ वर्ष कुन्दकुन्दके समकालीन रहे हैं । ऐसी हालत में यदि कुन्दकुन्दका ही निश्चित समय मालूम हो जाय तो उसपर से भी समन्तभद्रके आसन्न समयका बहुत कुछ यथार्थ बोध हो सकता है । परन्तु कुन्दकुन्दका समय भी अभी तक पूरी तौर से निश्चित नहीं हो पाया । नन्दिसंघकी पट्टावलीमें जो आपका समय वि० सं० ९४ से १०१ तक दिया है उस पर तो, पट्टावलीकी हालत को देखते हुए सहसा विश्वास नहीं होता, और उक्त पद्य में जो समय दिया है वह उन सब विकल्पों अथवा संदेहों का पात्र बना हुआ है जो ऊपर 'ग' भागमें उपस्थित किये गये हैं; और इसलिये इन दोनों आधारों परसे प्रकृत विषय के निर्णयार्थ यहाँ किसी विशेषताकी उपलब्धि नहीं होती — समन्तभद्र के समयसम्बन्धमें जो कल्पनाएँ ऊपर की गई हैं वे है। ज्योंकी त्यों कायम रहती हैं। अब देखना चाहिये दूसरे किसी मार्ग से भी कुन्दकुन्दका कोई ठीक समय उपलब्ध होता है या कि नहीं ।
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