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समय-निर्णय ।
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आपने एकादशांगधारियों तक ४६८ वर्षकी गणना की है । इस गणनामें एकादशांगधारियोंका एकत्र समय २२० की जगह १३३ वर्ष माना गया हैं और वह प्राकृत पट्टावलीके अनुसार है । इसी पट्टा -- वलीको लेकर आपने अन्तिम एकादशांगधारी कंसके बाद सुभद्र और यशोभद्रका समय क्रमशः ६ वर्ष और १८ वर्षका बतलाया है 1 इसके बाद, भद्रबाहु द्वितीयके २३ वर्ष समयका नन्दिसंघकी दूसरी पट्टावलीके साथ मेल देखकर कुन्दकुन्दके समय के लिये उस पट्टावलीका आश्रय लिया है; और पट्टावलीमें भद्रबाहु के आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होने का समय विक्रमराज्य सं० ४ दिया हुआ होनेसे यह प्रतिपादन किया है कि विक्रमका जन्म सुभद्रके उक्त समयारंभसे दूसरे वर्षमें हुआ है – अथवा इस उल्लेखके द्वारा यह सूचित किया है कि. विक्रम प्रायः १८ वर्षकी अवस्था में राज्यासनपर अभिषिक्त हुआ था और उस वक्त यशोभद्र के समयका १५ वाँ वर्ष बीत रहा था । साथ ही, इस पिछली पट्टावलीके आधारपर कुन्दकुन्द से पहले होनेवाले आचार्योंका जो समय आपने दिया है उससे मालूम होता है कि. यशोभद्रके बाद भद्रबाहु द्वितीय, गुप्तिगुप्त, माघनन्दी प्रथम और जिनचंद्र, ये चारों आचार्य ४५ वर्ष ८ महीने ९ दिन के भीतर हुए हैं; और चूंकि भद्रबाहु द्वितीयका आचार्य पद पर प्रतिष्ठित होना चैत्रसुदी १४ के दिन लिखा है, इससे यह भी मालूम होता है कि वे वीरनिर्वाणसे ४९२ ( ४६८+६+१८) वर्ष ५ महीने १३ दिन बाद आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे । इस तरह पर वीरनिर्वाण से ५३८ वर्ष १ महीना २२ दिन ( ४९२ वर्ष ५ महीने
१ वीरनिर्वाण कार्तिक वदी १५ के दिन हुआ था, उसके बाद चैत्रमुदी १४ः से पहले ५ महीने १३ दिनका समय और बैठता है ।
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