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समय-निर्णय ।
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समय निर्णय नहीं किया गया है। हमें यहाँपर सिर्फ इतना ही देखना. है कि चक्रवर्ती महाशयने कुन्दकुन्दके जिस समयका प्रतिपादन किया है वह कहाँ तक युक्तियुक्त प्रतीत होता है । रही यह बात कि ' एलाचार्य ' कुन्दकुन्दका नामान्तर था या कि नहीं, इस विषयमें हम सिर्फ इतना ही कहना चाहते हैं कि जहाँ तक हमने जैनसाहित्यका अवगाहन किया है, हमें नन्दिसंघकी पट्टावली अथवा गुर्वावलीको छोड़कर, दूसरे किसी भी ग्रंथ अथवा शिलालेख परसे यह मालूम नहीं होता कि ' एलाचार्य ' कुन्दकुन्दका नामान्तर था । अनेक शिलालेखों आदि परसे उनका दूसरा नाम 'पद्मनन्दि' ही उपलब्ध होता है और वही उनका दीक्षासमयका नाम अथवा प्रथम नाम था * ; 'कौण्डकुन्दाचार्य ' नामसे वे बादमें प्रसिद्ध हुए हैं जिसका श्रुतिमधुररूप 'कुन्दकुन्दाचार्य' बन गया है और यह उनका देशप्रत्यय नाम था क्योंक वे कोण्डकुन्दपुरके रहनेवाले थे और इस लिये कोण्डकुन्दाचार्य का अर्थ ' कोण्डकुन्दपुरके आचार्य ' होता है । उस समय इस प्रकारके नामोंकी परिपाटी ,थी, अनेक नगर-ग्रामोंमें मुनिसंघ स्थापित थेमुनियोंकी टोलियाँ रहती थीं और उनमें जो बहुत बड़े आचार्य होते थे वे कभी कभी उस नगरादिकके नामसे ही प्रसिद्ध होते थे। श्रवण
___ * जैसा कि श्रवणबेल्गोलके शिलालेखोंके निम्न वाक्योंसे पाया जाता है
तस्यान्वये भूविदिते बभूव यः पद्मनन्दि-प्रथमाभिधानः । श्रीकोण्डकुन्दादिमुनीश्वराख्यः सत्संयमादुद्गतचारणार्द्धः ॥
-शि० ले० नं० ४०। श्रीपानन्दीत्यनवद्यनामा ह्याचार्यशब्दोत्तरकोण्डकुन्दः । द्वितीयमासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसंजातसुचारणार्द्धः ।।
-नं. ४२,४३,४७,५०।
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