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स्वामी समन्तभद्र ।
भगवान के सिद्ध होनेके बाद ९७८५ वर्ष ५ महीने बीतने पर शक राजा हुआ । अथवा वीरेश्वरकी मुक्तिसे १४७९३ वर्षके अन्तर से शक राजा उत्पन्न हुआ । अथवा वीरजिनेन्द्रकी निर्वाण-प्राप्तिको जब ६०५ वर्ष ५ महीने हो गये तब शक राजा हुआ ।
इस कथनसे स्पष्ट है कि उस वक्त वीरनिर्वाणका होना एक मत तो शक राजासे ४६१ वर्ष पहले, दूसरा ९७८५ वर्ष ५ महीने पहले, तीसरा १४७९३ वर्ष पहले और चौथा ६०५ वर्ष ५ महीने पहले मानता था । इन चारों मतों में पहला मत नया है - उन मतों से भिन्न हैं जिनका इससे पहले उल्लेख किया गया है - और वही त्रिलोकप्रज्ञप्ति के कर्त्ताको इष्ट जान पड़ता है । यदि यही मत ठीक हो तो कहना चाहिये कि विक्रम राजा वीरनिर्वाण से ३२६ (४६१ - १३५) वर्ष बाद हुआ है, न कि ४७० वर्ष बाद, और इस समय वीरनिर्वाणसंवत् २३०७ बीत रहा है । साथ ही, यह भी कहना चाहिये किं उमास्वातिका समय उक्त पद्यके आधारपर वि० सं० ४४४ ( ७७० - ३२६ ) या ४४४ तक होता है और समन्तभद्रका समय भी तब विक्रमकी ५ वीं शताब्दीका प्रायः अन्तिम भाग ठहरता है; अथवा यों कहिये कि वह पूज्यपादके समयके इतना निकट पहुँच जाता है कि पूज्यपादको अपने प्रारंभिक मुनिजीवन में समन्तभद्रके सत्समागमसे लाभ उठानेकी बहुत कुछ संभावना रहती है ।
दूसरा और तीसरा दोनों मत एकदम नये ही नहीं, बल्कि इतने अद्भुत और विलक्षण मालूम होते हैं कि आजकल उनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । मालूम नहीं ये दोनों मत किस आधारपर अवलम्बित हैं और उनका क्या रहस्य है । इनके रहस्य को शायद कोई महान् शास्त्री ही जैन ग्रंथोंके बहुत गहरे अध्ययन के बाद उद्घाटन कर सके ।
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