________________
१५२
स्वामी समन्तभद्र ।
गलती हुई हो, फिर भी ऊपरके उल्लेखोंसे इतना तो स्पष्ट है कि प्रेमीजीका यह मत नया नहीं है— आजसे हजार वर्ष पहले भी उस मतके माननेवाले मौजूद थे और उनमें देवसेन तथा अमितगति जेस आचार्य भी शामिल थे । यदि यही मत ठीक हो और वीरनिर्वाणसे ४७० वर्ष बाद विक्रमका शरीरतः जन्म होना भी ठीक हो तो यह मानना पड़ेगा कि विक्रम सवंत् वीरनिर्वाण से प्राय: ५५० (४७०+ ८० ) वर्ष बाद प्रारंभ हुआ है आर वीर निवार्णको हुए आज प्रायः २५३१ (५५०+१९८१) वर्ष बीत गये हैं; क्योंकि विक्रमकी आयु ८० वर्षके करीब बतलाई जाती है । ऐसी हालत में उमास्वातिका समय उक्त पद्य परसे वि० सं० २२० या २२० तक निकलता है, और तब समन्तभद्र भी विक्रमकी तीसरी शताब्दीके या ईसाकी दूसरी और तीसरी शताब्दी विद्वान् ठहरते हैं ।
इस तरह विक्रम संवत् के जन्म, राज्य और मृत्यु ऐसे तीन विकल्प होनेसे वीरनिर्वाणसंवत् के भी तीन विकल्प हो जाते हैं, और उसक आधार पर निर्णय होनेवाले आचार्यों के समयमें भी अन्तर पड़ जाता है।
जॉर्ल चारपेंटियर नामके एक विद्वानने, जून, जुलाई और अगस्त सन् १९१४ के इंडियन 'एण्टिकेरी' के अंकोंमें, एक विस्तृत लेखके
* देवसेन आचार्यने अपने ' भावसंग्रह' में भी विक्रमके मृत्युसंवतका उल्लेख किया है और पं० वामदेवके भाव संग्रह में भी उसका उल्लेख निम्न प्रकार से पाया जाता है
सत्रिंशे शतेऽब्दानां मृते विक्रमराजनि ।
सौराष्ट्रे वल्लभीपुर्यामभूत्तत्कथ्यते मया ॥ १८८ ॥
१ यह लेख और इसके खंडनवाला लेख दोनों अभी तक हमें देखने को नहीं मिल सके।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org