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स्वामी समन्तभद्र ।
स्तुातेका वह पद्य उक्त शिलालेख में दिया हुआ है। इससे स्पष्ट है कि श्रीवर्द्धदेव बहुत पुराने आचार्य हुए हैं और वे पात्रकेसरीसे कई सौ वर्ष पहले हो गये हैं । फिर भी पात्रकेसरीका स्मरण उनसे भी पहले किया जाना इस बातको स्पष्ट सूचित करता है कि उक्त शिलालेखमें कालक्रमसे गुरुओंके स्मरणका कोई नियम नहीं रक्खा गया है, और इसलिये शिलालेख में समन्तभद्रका नाम सिंहनन्दिसे पहले लिये जानेकें कारण यह नहीं कहा जा सकता कि समंतभद्र सिंहनन्दिसे पहले ही हुए हैं। रही 'पट्टावली' की बात सो यद्यपि वह हमारे सामने नहीं है फिर भी इतना जरूर कह सकते हैं कि आम तौरपर पट्टावलियाँ प्रायः प्रचलित प्रवादों अथवा दंतकथाओं आदि के आधारपर पीछे से लिखी गई हैं, उनमें प्रमाणत्राक्यों तथा युक्तियों का अभाव है, और इसलिये केवल उन्हींके आधार पर ऐसे जटिल प्रश्नोंका निर्णय नहीं किया जा सकता -वे अधिक प्राचीन गुरुओंके क्रम और समयके विषय में प्रायः अपर्याप्त हैं ।
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२ –' कर्णाटक-कवि-चरिते नामक कनड़ी ग्रंथके रचयिता (मेसर्स आर० एण्ड एस० जी० नरसिंहाचार्य ) का अनुमान है कि समंतभद्र शक संवत ६० ( ई० सन् १३८ ) के लगभग हो गये हैं, ऐसा पंडित नाथूरामजीने, अपनी ' कर्णाटक - जैन- कवि' नामक पुस्तकमें सूचित किया है, जो प्रायः उक्त कनड़ी ग्रंथके आधारपर लिखी गई है। परंतु किस आधारपर उनका ऐसा अनुमान है, इसका कोई उल्लेख नहीं किया । जान पड़ता है उक्त पट्टावली के आधारपर : अथवा
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लेविस राइसके कथनानुसार ही उन्होंने समंतभद्रका वह समय लिखे दिया है, उसके लिये स्त्रयं कोई विशेष अनुसंधान नहीं किया । यही वजह है जो बादको मिस्टर एडवर्ड पी० राइस साहबने, अपने कड़ी - साहित्य के इतिहास ( History of Kanarese literature ) में,
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