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स्वामी समन्तभद्र ।
सिंहनंदि और पूज्यपाद से पहले समंतभद्रको स्थापित करनेवाली बात ही उनकी गलत है, और उन्होंने वास्तव में समंतभद्रको ईसवी सन् ७५० या उसके बादका विद्वान् माना है तो हमें इस कहने में जरा भी संकोच नहीं हो सकता कि आपकी यह मान्यता बिलकुल ही निराधार है, जिसका कहीं से भी कोई समर्थन नहीं हो सकता ।
४ - मध्यकालीन भारतीय न्यायके इतिहास ( हिस्टरी ऑफ दि मिडियावल स्कूल ऑफ इंडियन लॉजिक') में, डाक्टर सतीशचंद्र विद्या - भूषण, एम० ए० ने अपना यह अनुमान प्रकट किया है कि समंत - भद्र ईसवी सन् ६०० के करीब हुए हैं * । परंतु आपके इस अनुमानका क्या आधार है - अथवा किन युक्तियों के बल पर आप ऐसा अनुमान करनेके लिये बाध्य हुए हैं, यह कुछ भी सूचित नहीं किया । हाँ, इससे पहले, इतना जरूर सूचित किया है कि समंतभद्रका उल्लेख हिन्दू तत्त्ववेत्ता ' कुमारिल' ने भी किया है और उसके लिये डाक्टर भांडारकरकी संस्कृतग्रंथविषयक उस रिपोर्टके पृष्ठ ११८ को देखनेकी प्रेरणा की है जिसका उल्लेख हम नं० १ में कर चुके हैं। साथ ही यह प्रकट किया है कि ' कुमारिल' बौद्ध तार्किक विद्वान् धर्मकीर्तिका समकालीन था और उसका जीवनकाल आमतौर पर ईसाकी ७ वीं शताब्दी माना गया है । शायद इतने ग्रंथ में समंतभद्रका उल्लेख मिल जानेसे ही आपने रिलसे कुछ ही पहलेका विद्वान् मान लिया है । यदि ऐसा है तो
* Samantabhadra is supposed to have flourished about 600 A. D.
परसे ही - कुमारिल के समंतभद्रको कुमा
१ सूचित करनेकी खास जरूरत थी; क्योंकि दूसरे विद्वान् सभंतभद्रका अस्तित्व समय ईसाकी पहली या दूसरी शताब्दी मान रहे थे ।
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