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स्वामी समन्तभद्र ।
सेनकी मान्यता है, दिगम्बरोंकी पट्टावली - गुरुपरम्पराओं में भी सिद्धसेनका नाम है, कितने ही दिगम्बर आचार्योंद्वारा सिद्धसेन खास तौर पर स्तुति किये गये हैं और अपने ग्रन्थोंके साहित्य परसे भी वे खसूसियत के साथ कोई श्वेताम्बर मालूम नहीं होते तब, वैसा लिखनेके लिये आप कुछ युक्तियों का प्रयोग जरूर करते अथवा, इस विषय में, दोनों ही सम्प्रदायों की मान्यताका उल्लेख करते; परंतु इन दोनों ही बातोंका वहाँ एकदम अभाव है, और इसी लिये हमारी उपर्युक्त राय है । रहा ' क्षपणक ' शब्द, वह सामान्यरूपसे जैनसाधुका बोधक होने पर भी खास तौर पर श्वेताम्बर साधुका कोई द्योतक नहीं है; प्रत्युत इसके वह बहुत प्राचीन कालसे दिगम्बर साधुओंके लिये व्यवहृत होता आया है, हिन्दुओं तथा बौद्धों के प्राचीन ग्रंथों में निर्ग्रथ - दिगम्बर साधुओंके लिये उसका प्रयोग पाया जाता है और खुद श्वेताम्बर ग्रंथोंमें भी वह दिगम्बरोंके लिये प्रयुक्त हुआ है, जिसका एक उदाहरण नीचे दिया जाता है
१' सेनगण' की पट्टावली में ' सिद्धसेन' का निम्न प्रकारसे उल्लेख पाया जाता है
( स्वस्ति) श्रीमदुज्जयिनीमही कालसंस्थापन महाकालालिंग महीधर वाग्वदण्डविष्टघाविष्कृतश्री पाश्वतीर्थेश्वरप्रतिद्वन्द्वश्री सिद्ध सेनभट्टारकाणां । — जैन सि० भा०, प्रथम किरण | २ हरिवंशपुराणके कर्ता श्रीजिनसेनाचार्यने, अपनी गुरुपरम्पराका उल्लेख करते हुए उसमें, 'सिद्धसेन का नाम भी दिया है । यथा'सुसिद्धसेनोऽभयभीमसेनको गुरू परौ तौ जिन-शांतिषेणकौ ।'
- हरिवंशपुराण ३ दिगम्बराचार्योंद्वारा की हुई स्तुतियोंके कुछ पथ इस प्रकार हैं
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