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समय-निर्णय |
1796
स्वामी समंतभद्रने अपने अस्तित्व भूमिको भूषित और पवित्र किया, यह एक प्रश्न है जो अभी
समय इस भारत
पर इसी प्रश्नका
तक विद्वानों द्वारा विचारणीय चला जाता है । यहाँ कुछ विशेष विचार और निर्धार किया जाता है ।
मतान्तर विचार |
सबसे पहले हम, इस विषयमें, दूसरे विद्वानोंके मतोंका उल्लेख करते हैं और देखते हैं कि उन्होंने अपने अपने मतको पुष्ट करने के. लिये किन किन युक्तियों का प्रयोग किया है—
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१ - मिस्टर लेविस राइस साहबने, अपनी 'इंस्क्रिप्ांस ऐट श्रवणबेल्गोल ' नामक पुस्तककी प्रस्तावना में, यह अनुमान किया है कि समंतभद्र ईसाकी पहली या दूसरी शताब्दी में हुए हैं। साथ ही, यह सूचित किया है कि जैनियोंके परम्परागत कथन ( Jain tradition) के अनुसार समन्तभद्रका अस्तित्वसमय शक संवत् ६० (ई० सन् १३८)* के लगभग पाया जाता है, और उसके लिये उस ' पट्टावली ' को देखनेकी प्रेरणा की है जो, हस्तलिखित संस्कृत ग्रंथोंके अनुसंधानविषयक़, डाक्टर भांडारकरकी सन् १८८३-८४ की रिपोर्टमें, पृष्ठ ३२० पर प्रकाशित हुई है । दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिए कि जैनियोंमें जो यह कहावत प्रचलित है कि समंतभद्र विक्रमकी दूसरी शताब्दी में हुए हैं। उसे राइस साहबने प्रायः ठीक माना है, और उसीकी पुष्टिमें उन्होंने अपने अनुमानको जन्म दिया है। आपके इस अनुमानका आधार, श्रवण
* ' कर्णाटकशब्दानुशासन' की भूमिका में भी आपने यही समय दिया है ।
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