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स्वामी समन्तभद्र ।
ही धर्मात्मा थे और आपने अपने अन्तःकरणकी आवाजसे प्रेरित - होकर ही जिनदीक्षा * धारण की थी ।
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दीक्षा से पहले आपकी शिक्षा या तो उरैयूर में ही हुई है और या - वह कांची अथवा मदुरा में हुई जान पड़ती है । ये तीनों ही स्थान उस वक्त दक्षिण भारत में विद्याके खास केन्द्र थे और इन सबों में जैनियों के अच्छे अच्छे मठ भी मौजूद थे जो उस समय बड़े बड़े विद्यालयों तथ । शिक्षालयोंका काम देते थे ।
आपका दीक्षास्थान प्रायः कांची या उसके आसपासका कोई ग्राम जान पड़ता है और कांची * ही — जिसे 'कांजीवरम् ' भी कहते हैंआपके धार्मिक उद्योगों की केन्द्र रही मालूम होती है । आप वहींके 'दिगम्बर साधु थे । 'कांच्यां नग्नाटकोsहं ' आपके इस वाक्यसे भी यही ध्वनित होता है । कांचीमें आप कितनी ही बार गये हैं, ऐसा उल्लेख + ' राजावलीकथे' में भी मिलता है ।
* सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानपूर्वक जिनानुष्ठित सम्यक् चारित्रके ग्रहणको "" जिनदीक्षा' कहते हैं । समन्तभद्रने जिनेन्द्रदेव के चारित्र गुणको अपनी जाँचद्वारा न्यायविहित और अद्भुत उदयसहित पाया था, और इसी लिये वे सुप्रसन्नचित्त से उसे धारण करके जिनेन्द्रदेवकी सच्ची सेवा और भक्ति में लीन हुए थे । - नीचे के एक पद्यसे भी उनके इसी भावकी ध्वनि निकलती है
अत एव ते बुधनुतस्य चरितगुणमद्भुतोदयम् ।
न्यायविहितमवधार्य जिने त्वयि सुप्रसन्नमनसः स्थिता वयम् ॥ १३० ॥
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— युक्त्यनुशासन ।
* द्रविड देशकी राजधानी जो अर्सेतक पल्लवराजाओंके अधिकार में रही है । - यह मद्रास से दक्षिण-पश्चिमको ओर ४२ मीलके फासलेपर, वेगवती नदी पर स्थित है ।
x यह पूरा पद्य आगे दिया जायगा ।
+ स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनिज्म, पृ० ३० ।
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