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भावी तीर्थकत्व |
कृत्वा श्रीमज्जिनेन्द्राणां शासनस्य प्रभावनां । स्वर्मोक्षदायिनीं धीरो भावितीर्थकरो गुणी |
— नेमिदत्तकृत आराधनाकथाकोश | आ भावि तीर्थकरन् अप्प समंतभद्रस्वामिगलु.......
- राजावलिक थे |
अट्ठ हरी णव पsिहरि चक्कि चउक्कं च एय बलभद्दो । सेणिय समंतभद्दो तित्थयरा हुंति णियमेण * ।।
श्रीवर्द्धमान महावीर स्वामीके निर्वाणके बाद सैकड़ों ही अच्छे अच्छे महात्मा आचार्य तथा मुनिराज यहाँ हो गये हैं परंतु उनमें से दूसरे किसी भी आचार्य तथा मुनिराज के विषयमें यह उल्लेख नहीं मिलता कि वे आगेको इस देशमें ' तीर्थंकर' होंगे । भारत में 'भावी तीर्थकर ' होनेका यह सौभाग्य, शलाका पुरुषों तथा श्रेणिक राजा के साथ, एक समंतभद्रको ही प्राप्त है और इससे समंतभद्र के इतिहासका उनके चरि
का - गौरव और भी बढ़ जाता है । साथ ही, यह भी मालूम हो जाता है कि आप १ दर्शनशुद्धि, २ विनयसम्पन्नता, ३ शीलवतेष्वनति -
१ इस गाथा में लिखा है कि-आठ नारायण, नौ प्रतिनारायण, चार चक्रवर्ती, एक बलभद्र, श्रेणिक और समन्तभद्र ये ( २४ पुरुष आगेको ) नियमसे तीर्थंकर होंगे ।
* यह गाथा कौनसे मूल ग्रंथकी है, इसका अभीतक हमें कोई ठीक पता नहीं चला। पं० जिनदास पार्श्वनाथजी फडकुलेने इसे स्वयंभूस्तोत्रके उस हालके संस्करणमें उद्धृत किया है जिसे उन्होंने संस्कृतटीका तथा मराठीअनुवादसहित प्रकाशित कराया है । हमारे दर्याफ्त करने पर पंडितजीने सूचित किया है कि यह गाथा ' चर्चासमाधान' नामक ग्रंथ में पाई जाती है । ग्रंथके इस नाम परसे ऐसा मालूम होता है कि वहाँ भी यह गाथा उद्धृत ही होगी और किसी दूसरे ही पुरातन ग्रंथकी जान पड़ती है ।
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