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स्वामी समन्तभद्र।
_ ऐसे सातिशय पूज्य महामान्य और सदा स्मरण रखने योग्य भगे'वान् समंतभद्र स्वामीके विषयमें श्रीशिवकोटि आचार्यने, अपनी 'रत्नमाला' में जो यह भावना की है कि वे निष्पाप स्वामी समंतभद्र मेरे हृदयमें रात दिन तिष्ठो जो जिनराजके ऊँचे उठते हुए शासन समुद्रको बढ़ानेके लिये चंद्रमा हैं' वह बहुत ही युक्तियुक्त है और हमें बड़ी प्यारी मालूम देती है। निःसन्देह स्वामी समंतभद्र इसी योग्य हैं कि उन्हें निरंतर अपने हृदयमंदिरमें विराजमान किया जाय; और इस लिये हम, शिवकोटि आचार्यकी इस भावनाका हृदयसे अभिनंदन और अनुमोदन करते हुए, उसे यहाँपर उद्धृत करते हैं ,
स्वामी समन्तभद्रो मेऽहर्निशं मानसेऽनघः । तिष्ठताजिनराजोद्यच्छासनाम्बुधिचंद्रमाः ॥४॥
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१ श्रीविद्यानदाचार्यने भी अष्टसहस्रीमें कई बार इस विशेषणके साथ आपका उल्लेख किया है।
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