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स्वामी समन्तभद्र।
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ऐसी शक्ति प्राप्त हो गई थी जिससे वे, दूसरे जीवोंको बाधा न पहुँचाते हुए, शीघ्रताके साथ सैकड़ों कोस चले जाते थे। उस उल्लेखके कुछ वाक्य इस प्रकार हैं....समन्तभद्राख्यो मुनि यात्पदर्द्धिकः ॥
-विक्रान्तकौरव प्र० । ....समंतभद्रार्यों जीयात्प्राप्तपदर्द्धिकः। ..
-जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय । ....समंतभद्रस्वामिगलु पुनर्दीगोण्डु तपस्सामर्थ्यदि चतुरङ्गुलचारणत्वमं पडेदु........ ।
-राजावलीकथे। .. . ऐसी हालतमें समन्तभद्रके लिये सुदूरदेशोंकी लम्बी यात्राएँ करना भी कुछ कठिन नहीं था । जान पड़ता है इसीसे वे भारतके प्रायः सभी प्रान्तोंमें आसानीके साथ घूम सके हैं । . समंतभद्रके इस देशाटनके सम्बन्धमें मिस्टर एम. एस. रामस्वामी
आय्यंगर, अपनी 'स्टडीज इन साउथ इंडियन जैनिज्म' नामकी पुस्तकमें लिखते हैं
"...It is evident that he ( Samantbhadra) was a great Jain missionary who tried to spread far and wide Jain doctrines and morals and that he met with no opposition from other sects wherever he went.”
अर्थात्—यह स्पष्ट है कि समन्तभद्र एक बहुत बड़े जैनधर्मप्रचारक थे, जिन्होंने जैनसिद्धान्तों और जैन आचारोंको दूर दूर तक विस्तारके साथ फैलानेका उद्योग किया है, और यह कि जहाँ कहीं वे गये हैं.
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