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बेल्गोलके शिलालेख नं० १११ ( २७४ ) से भी, जो शक सं० १२९५ का लिखा हुआ है, इसका समर्थन होता है । और साथ ही, यह भी पाया जाता है कि शुभकीर्तिके एक शिष्य 'धर्मभूषण ' भी थे, जिनकी शिष्यपरम्पराका इस शिलालेखमें उल्लेख है । अस्तु; ये प्रभाचंद्र भी विक्रमकी १३ वीं और १४ वीं शताब्दीके विद्वान् थे। उक्त ४ थी किरणमें प्रकाशित नन्दिसंघकी पट्टावलीके * आचार्योंकी नामावलीमें इनके पट्टारोहणका जो समय वि० सं० १३१० दिया है संभव है कि वह ठीक ही हो अथवा इनका पट्टारोहण उससे भी कुछ पहले हुआ हो । ये आचार्य दीर्घजीवी-प्रायः सौ वर्षकी आयुके धारक हुए जान पड़ते हैं।
(१६) वे प्रभाचंद्र (प्रभेन्दु ) मुनि जो अष्टांगयोगसम्पन्न थे और जिन्होंने 'चरित्रसार'की छह हजार श्लोकपरिमाण एक वृत्ति लिखकर (लेखयित्वा) मलधारि ललितकीर्तिके शिष्य कल्याणकीर्तिको समर्पित की थी और जिसका उल्लेख जैनसिद्धान्त भवन आरामें उक्त चारित्रसारकी कनड़ी टीकाके अन्तिम भागपर पाया जाता है । कल्याणकीर्ति वि० सं० १४८८ में मौजूद थे। उन्होंने, पांड्य नगरके गोम्मटस्वामिचैत्यालयमें रहते हुए, शक सं० १३५३ में ' यशोधरचरित्र'की रचना की है-इससे ये प्रभाचन्द्र विक्रमकी प्रायः १५ वीं शताब्दीके उत्तरार्धके विद्वान् थे।
( १६ ) वे प्रभाचंद्र जो ‘नयसेन ' आचार्यकी संततिमें होनेवाले ' हेमकीर्ति' भट्टारकके शिष्य धर्मचंद्र' के पट्टशिष्य थे, और जिन्होंने, सकीट नगर (एटा जिला) में, लम्बकंचुक (लमेचू?) आम्नायके 'सकरू' साधु (साह) के पुत्र पं० सोनिककी प्रार्थनापर तत्त्वार्थसूत्रकी 'तत्वार्थरत्नप्रभाकर' नामकी टीका लिखी है । इस टीकाकी रचनाका समय कारंजाकी प्रतिमें वि० सं० १४८९ दिया हुआ है, ऐसा बाबू हीरालालजी एम० ए० सूचित करते हैं। इससे इन प्रभाचंद्रका समय भी विक्रमकी १५ वीं शताब्दो जान पड़ता है
(१८) वे प्रभाचंद्र जो शुभचंद्र भ० के पट्ट अथवा पद्मनंदिके प्रपट्ट पर प्रतिष्ठित होनेवाले जिनचंद्र भ० के पट्टशिष्य थे, जिनका पट्टाभिषेक सम्मेदशिखर पर हुआ था, जो धर्मचंद्र, धर्मकीर्ति अथवा चंद्रकीर्तिके पदगुरु थे और जिन्हें देवागमालंकृति, प्रमेयकमलमार्तड तथा जैनेंद्रादिक लक्षणशास्त्रोंका ज्ञाता ___ * जैनहितैषी भाग छठा, अंक ७-८ में प्रकाशित 'पट्टावली' में भी यही समय दिया है।
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