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( ४ ) वे प्रभाचंद्र जो परलुरुनिवासी ‘विनयनन्दी' आचार्यके शिष्य में और जिन्हें चालुक्य राजा 'कीर्तिवर्मा' प्रथमने एक दान दिया था। ये आचार्य विक्रमकी छठी और सातवीं शताब्दीके विद्वान् थे, क्यों कि उक्त कीर्तिवर्माका अस्तित्व समय शक सं० ४८९ पाया जाता है।'
(५) 'प्रमेयकमलमार्तण्ड' और ' न्यायकुमुदचंद्रोदय'के कर्ता वे प्रसिद्ध प्रभाचंद्र, जो 'परीक्षामुख'के रचयिता माणिक्यनन्दी आचार्यके शिष्य थे और आदिपुराणके कर्ता श्रीजिनसेनाचार्यने जिनकी स्तुति की है। ये आचार्य विक्रमकी प्रायः ८ वीं ९ वीं शताब्दोके विद्वान् थे । जैनेन्द्र व्याकरणका 'शब्दाम्भोजभास्कर' नामका महान्यास भी संभवतः आपका ही बनाया हुआ है और शायद 'शाकटायनन्यास'के कर्ता भी आप ही हों; क्यों कि. शिमोगा जिलेसे मिले हुए नगर ताल्लुकेके ४६ वें नंबरके शिलालेखमें एक पद्य इस प्रकार पाया जाता है
सुखि....न्यायकुमुदचन्द्रोदयकृते नमः।
शाकटायनकृत्सूत्रन्यासक। व्रतीन्दवे ॥ (६) वे प्रभाचंद्र जो 'पुष्पनंदी' के शिष्य और 'तोरणाचार्य' के प्रशिष्य थे और जिनके लिये शक संवत् ७१९ वि० सं० ८५४ में एक वसतिका बनाई गई थी, जिसका उल्लेख राष्ट्रकूट राजा तृतीय गोविंदके एक ताम्रपत्र में मिलता है। शक सं० ७२४ के दूसरे ताम्रपत्रमें भी आपका उल्लेख है + ।
(७) वे प्रभाचंद्र जो 'वृषभनन्दि' अपर नाम 'चतुर्मुखदेव'के शिष्य और वक्रगच्छके आचार्य ‘गोपनन्दि'के x सहाध्यायी ( गुरुभाई ) थे; और
* देखो 'साउथ इंडियन जैनिज्म' भाग दूसरा, पृ० ८८ । * इस न्यासकी एक प्रति बम्बईके सरस्वतीभवनमें मौजूद है परंतु करीब १२००० श्लोक परिमाण होने पर भी वह अपूर्ण है-अन्तके दो अध्यायोंका न्यास उसमें नहीं हैं- पूरा न्यास ३०००० श्लोकपरिमाण बतलाया जाता है, ऐसा पं० नाथूरामजी प्रमी सूचित करते हैं। + देखो, माणिकचंद्रग्रंथमालामें प्रकाशित 'षट्प्राभृतादिसंग्रह' की भूमिका । x गोपनन्दिको होयसल राजा एरेयंगने शक सं० १०१५ में जीर्णोद्धार आदि कार्योंके लिये दो गाँव दान किये थे। देखो, एपिग्रेफिया कर्णाटिका, जिल्द ५वीमें चनरायपट्टण ताल्लुकेका शि० लेख नं. १४८ ।
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