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पुरुषार्थसिधुपाय (२) अर्थागम-शब्दोंके द्वारा जो अर्थ या त्राच्यरूप पदार्थ कहा जाता है, उसको अर्थागम कहते हैं। कारण कि शब्दोंका व अर्थोंका याच्यवाचक नित्य सम्बन्ध रहता है ऐसा समझना चाहिये।
(३) ज्ञानागम-शब्दोंका और अर्थोंका जो ज्ञान श्रोताओंको होता है, उसको ज्ञानागम कहते हैं । आगम शव्दका अर्थ आना या प्राप्त होना है । अतएव परीक्षामुखमें लिखा है.--- 'आतवचनादिनिधनमर्थज्ञान मायम:' ।
...-परीक्षामुख ३३९९ अर्थ-जिनेन्द्रदेव ( आप्त )के वचनों आदिके निमित्तसे जो पदार्थोंका शाम होता है, उसको आगम ( ज्ञानागम) कहते हैं। यहाँ पर वचनोंको गौण करके सिर्फ ज्ञानको मुख्यता की गई है ऐसा समझना और कोई भेद नहीं है । अस्तु, वह ज्ञान शब्दों द्वारा आता है याने प्रकट होता है अतएव वह आगमरूप सिद्ध होता है । यथार्थतः वे वाचक शब्द ही आगम हैं----आये हैं ...सन्दरूप परिणत हुए हैं।
उस ज्ञानागमके सिलसिले में ही नय व प्रमाणका विवेचन किया जाता है
ज्ञानके याने जाननेके साथनके दो भेद माने गये हैं (१) नय तथा (२) प्रमाण । पदार्थोंका ज्ञान नयसे व प्रमाणसे होता है । नयसे आंशिक ( थोड़ा ) ज्ञान होता है और प्रमाणसे सम्पूर्णका ज्ञान होता है यह मूल भेद है।
यहाँ प्रश्न होता है कि जब नयसे पदार्थका पूरा ज्ञान नहीं होता-थोड़ा-थोड़ा होता है लब उसमें प्रामाणिकता ( सत्यता ) कैसे आसकती है ? इसका उत्तर निम्न प्रकार है
मिथ्यासमूहो मिथ्या चेक मिश्य कामततास्ति नः | निरपेक्षा नया मिथ्या सापेक्षा वस्तु तेऽर्थकृस् ॥१६॥
-प्रातमीमांसा अर्थात् नय भी प्रमाणको तरह प्रामाणिक होते हैं। लेकिन तभी, जब वे परस्पर सापेक्ष भाने जाते हैं। अर्थात् नत्रका विषय पदार्थका एक अंश व देश है जो सत्यरूप है। इसलिये उसका जानना उतने अंशमें सही है, परन्तु वह पदार्थको उत्तना मात्र ही नहीं बताता या भानता, जिससे वह अप्रामाणिक सिद्ध हो सके । अतएव सभी नय या वस्तु के अंश मिलकर वस्तु या पदार्थको पूरा बनाते हैं तथा परस्पर मेल या सहयोग रखते हैं। ऐसा नहीं कि एक नय ( अंश) दूसरे नयको छोड़ देला हो- उसका अभाव या खंडन कर देता हो? अतएव गौण-मुख्यरूपसे सभी जय कार्य करते हैं । इससे वे प्रामाणिक हैं-अप्रामाणिक नहीं हैं । ऐसी स्थिति में वे परस्पर सापेक्ष नय वस्तुरूप हैं और वस्तुरूप होनेसे अर्थक्रियाकारी हैं। इसके विपरीत यदि वे नय परस्पर सापेक्ष न होनिरपेक्ष हों तो वे मिथ्या हैं-सम्यक नहीं है, क्योंकि निरपेक्ष नयोंको मिथ्या कहा गया है और सापेक्षोंको सम्यक् । अतः सापेक्ष अंशोंको विषय करने तथा प्रमाणका अंश होनेसे मय प्रमाण हैं।