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१२ : पीयूष घट समक्ष अपनी चारों पुत्र वधुओं के हाथ में पाँच-पाँच चावल के दाने देकर कहा ! "इन्हें संभालकर रखना और जब मैं मांगु, तब मुझे लाकर दे देना।"
पहली पुत्र वधू, उझिका ने विचार किया : "इस समृद्ध घर में चावलों की क्या कमी है ?" उसने वे दाने फेंक दिए।
दूसरी ने विचार किया : "ये दाने ससुरजी ने दिए हैं। फेंकने योग्य नहीं हैं।" उसने खा लिए।
तीसरी ने उन दानों को रेशमी कपड़े में बांधकर रत्न करण्डिका में रख छोड़े और सोचा : "जब माँगेंगे, तब दे दूंगी।"
चौथी ने विचारा : “ससुर जी बुद्धिमान हैं, पाँच दाने देने में कोई विशेष प्रयोजन होना चाहिए।" रोहिणी ने वे पाँच चावल के दाने अपने पितृगृह भेज दिए बोने के लिए । पाँच वर्ष में दानों से कोठे भर गए। ___पाँच वर्ष के बाद ससुर ने फिर अपने परिजनों और ज्ञातिजनों के समक्ष प्रीति भोज किया और उनके समक्ष अपने दिए हुए पाँच-पाँच चावल के दाने माँगे। उझिका ने कहा "वे मैंने फेंक दिए थे, ये नये दाने लीजिए।" __ भोगवती ने कहा : “मैंने खा लिए थे, नये कहो तो ला हूँ।" रक्षिता ने वे सुरक्षित लौटा कर कहा : "लीजिए।
रोहिणी ने कहा : "उन्हें लाने के लिए गाड़ियां चाहिए, आदमी उन्हें नहीं ला सकता। धन्य सार्थवाह रोहिणो की बात से अत्यन्त प्रसन्न हुए और सबके सामने कहा :
"आज से मैं अपने घर का सारा भार रोहिणी को सौंगता हूँ। रक्षिका को मैं सम्पत्ति रक्षा का दायित्व देता हूँ। भोगवती
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