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७६ : पीयूष घट
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अपने पर अनुरक्ति की कमी और विरक्ति की अधिकता देखकर सूर्यकान्ता रानी के मन में क्षोभ, रोष और प्रतिशोध की आग जलने लगी । अपने भोग-विलास में विघ्न समझ कर वह उबल पड़ी। जब रानी को यह ज्ञात हुआ कि राजा ने अपने राज्य के चार विभाग कर दिए है, और अब वे निवृत्त होते जा रहे हैं, तब तो रोष की ज्वालाएँ फूट पड़ीं ! रानी ने भोजन में विष देकर राजा परदेशी को मारने का असफल प्रयत्न किया ओफ''''! स्वार्थान्ध व्यक्ति कितना क्रूर हो जाता है ?
परदेशी को विष दान का पता लगा । वह पौषधशाला में जाकर बैठ गया । जीवन की आलोचना करके संलेखना कर ली । उसके मन में सूर्यकान्ता के प्रति जरा भी द्वेष और रोष नहीं था । वह शान्त, प्रशान्त, उपशान्त था । समाधि मरण से मरकर वह प्रथम देवलोक के सूर्याभ विमान में सूर्याभ देव बन गया । वहाँ से महाविदेह क्षेत्र में होकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा ।
- राय पसेणिय/
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