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आर्द्रक कुमार
जीवन में कभी उत्थान, कभी पतन | विचार का स्थान विकार ने लिया, कि पतन तैयार । विकार को हटाकर विचार आया, कि उत्थान । साधक जीवन का लक्ष्य है-पतन से उत्थान की ओर सजग होकर बढ़ना ।
समुद्र के मध्य में स्थित आर्द्र कपुर एक नगर था । आद्रक वहाँ का राजा था, आर्द्रका रानी, तथा आर्द्रा के कुमार बहाँ का राजकुमार था । श्रेणिक में और आर्द्र के राजा में परस्पर प्रभूत प्रेम था । अभय कुमार और आर्द्र' के कुमार में भी परस्पर अत्यन्त स्नेह - सद्भाव था 1 प्रेम में अपार शक्ति है ।
एक बार अभय कुमार ने आद्रक कुमार के लिए कतिपय सुन्दर उपहार भेजे, जो धर्म-साधना के उपकरण थे। उन्हें देखकर आर्द्रा'क कुमार अत्यन्त प्रसन्न हुआ । विचार करते-करते उसे जाति-स्मरण ज्ञान हो गया ।
भारत आने की पिता से अनुमति माँगी परन्तु सफलता नहीं मिली । राजकुमार कभी चला न जाए, इसलिए पाँच-सी अंगरक्षक तैनात कर दिए गए। किन्तु किसी प्रकार आद्र के कुमार वहाँ से निकलने में सफल हो गया । आर्य-भूमि भारत में आते ही उसने स्वयं दीक्षा ले ली ।
एक बार घूमता- घूमता आर्द्रा के मुनि वसन्तपुर में आया । नगर के बाहर किसी श्रेष्ठी के बाग में ध्यान-मुद्रा में स्थित हो गया ।
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