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भूले-भटके राही : १८७ डाला। अतिथि को सेवा के लिए ही तो उसे पाला-पोषा गया था।
यह क्रूर कर्म देखकर बछड़ा भी भयभीत हो गया कि कहीं मेरी भी यही दशा न हो जाए।-परन्तु गाय ने कहा-घबरा मत; हमें कोई कांटने वाला नहीं है। क्योंकि हम सूखा घास खाकर दूध देते हैं । भय तो उन्हें है --- जो खूब खा पीकर भी कुछ देते नहीं हैं। "जो खाएगा गटका, वही सहेगा झटका।" बकरे की सेवा का फल उसे मिल रहा है । ___ गूरु गाय के समान है, शिष्य बछड़े के समान । पाप श्रमण बकरे के समान है। काल अतिथि के तुल्य है।
उत्तराध्ययन सूत्र, अ० ७, नि० गा० २४.५
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