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भूले-भटके राही : १६१
से जब वह गुजर रहा था, तो तीव्र प्यास से उसके प्राण संकट में फंस गए। इधर-उधर देखा, पर वहाँ जल कहाँ ? अत्यन्त प्रयत्न करने पर उसे एक तलैया मिली । उसका जल सड़ गया था, उसमें अनेक मत हरिणों के कलेवर पड़े होने के कारण उसका जल अपेय बन चुका था। परन्तु तीव्र तष्णा जल चाहती है, स्वच्छता और अस्वच्छता नहीं। वणिक ने उसी जल को पीकर अपने बुझते हुए प्राणदीप को बचा लिया।
उसी विपूल रत्न राशि को देखकर वह अपने घर पहँच गया उसको दीनता और दरिद्रता सुख और समद्धि में परिणत हो गई। ___ यह विश्व विकट वन है। आत्म-साधक वणिक है । ज्ञान, दर्शन और चारित्र आदि सद्गुण रत्न राशि है। विषयकषाय चोर है। जो साधक कष्ट सहन करके भी इसे पार कर लेता है, वह सदा सुखी है ।
-विजयमुनि, साहित्यरत्न
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