Book Title: Piyush Ghat
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 197
________________ जीवन जीने की कला शक्ति से जो कार्य नहीं होता, वही कार्य बुद्धि से सुगमता के साथ हो जाता है । शक्ति से बुद्धि अधिक महत्वपूर्ण है। किसी वन में एक मत गज पड़ा था । घमता-धमताक सियार उधर आ निकला। मन में सोचा, 'यह मेरे लिए यथेट भोजन है, बहुत दिनों तक काम चलेगा।' वह इस प्रकार सोच ही रहा था, कि एक सिंह भी वहाँ आ पहुँचा । सियार बड़ा वर्त होता है। सिंह ने पूछा, 'तू यहाँ क्यों बैठा है ?' 'मामाजी, मैं आपको भोजन के लिये निमन्त्रण देता हूँ' सियार ने सिंह से कहा । सिंह ने पूछा, 'यह किसका शिकार है ?' सियार ने चालाकी से कहा, 'व्याघ्र का है।' यह सुनकर सिंह वहाँ से चल पड़ा । क्योंकि सिंह अपने पुरुषार्थ का ही खाता है, किसी दूसरे के श्रम का नहीं। __कुछ समय बाद वहाँ व्याघ्र आ गया। उसने भी पूछा'यह किसका शिकार है।' सियार ने होशियारी से काम लिया। बोला-सिंहका है। यह सुनकर व्याघ्र वहां से भाग खुला हुआ। अभी विघ्न परम्परा निःशेष नहीं हुई थी। थोड़ी देर बाद ही वहाँ एक काक आ गया था। सियार ने सोचा- यदि इसे कुछ नहीं दूंगा, तो यह कांव. काँव करके अन्य बहत कागों को यहाँ एकत्रित कर लेगा । और फिर काकरव से यहाँ अन्य बहुत से विघ्नकर जीव एकत्रित हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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