Book Title: Piyush Ghat
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 188
________________ अंजु कुमारी भोग ओर रोग का साथ है। जहाँ भोग है, वहाँ रोग अवश्य रहता है । भोग प्रारम्भ में मधुर लगता है, परन्तु अन्त में उसका फल कटु होता है। ____ वर्धमानपुर नगर में विजय मित्र राजा था। इसी नगर में धनदेव एक सार्थवाह रहता था। उसकी पत्नी प्रियंगु और पुत्री अंजू कुमारी थी। अंजू कुमारी रूप, यौवन और लावण्य से सम्पन्न थी। भगवान महावीर नगर के बाहर बाग में ठहरे थे। गणधर गौतम गोचरी लेकर आ रहे थे । मार्ग में उन्होंने एक करुण दृश्य को देखा एक नारी थी। उसके शरीर में रक्त और मांस अत्यन्त अल्प था। अस्थि-पंजर मात्र थी सभी लोग उसे घृणा भरी दृष्टि से देख रहे थे। गौतम ने पूछ।-"भंते, यह ऐसा क्यों हुआ?" भगवान् ने धीर स्वर में कहा "इन्द्रपुर एक नगर था। इन्द्र दत्त राजा था। पृथ्वीश्री वहाँ एक वेश्या थी। उसने अपने रूप और सौन्दर्य की आग में नगर के अनेक तरुणों को दग्ध कर दिया था । अपने इस पाप के कारण वह मरकर नरक में गई । वहाँ अपने पाप का फल भोग कर वह प्रियंगु की पुत्री अंजू कुमारी बनी। विजय मित्र राजा उसके रूप Jain Education International al For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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