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१८० : पीयूष घट और यौवन पर मुग्ध हो गया। उसे अपनी रानी बना लिया । कालान्तर में अंजू कुमारी अत्यन्त रुग्ण हो गई । चिकित्सा कराने पर भी स्वस्थ नहीं हो सकी भोग का अतिरेक जीवन का अन्त कर देता है। जिस नारी को तुमने देखा है, वही अंजू कुमार
"अनन्त संसार का परिभ्रमण करके अन्त में महाविदेह में सिद्ध होगी।"
"भोग में रोग का भय है. रूप में जरा सा भय है, धन में चोरी का भय है। सर्वत्र भय ही भय है। अभय तो मात्र एक वैराग्य में ही है । संयम में किसी प्रकार का भय नहीं रहता।"
विपाक N० १, अ० १०/.
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