Book Title: Piyush Ghat
Author(s): Vijaymuni Shastri
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 192
________________ भूले-भटके राही : १८३ जिससे इसके मानस में रचे जाने वाले कुचक्रों का भण्डाफोड़ हो ब्रह्मा अपनी इस मानव-रूप सर्वश्रेष्ठ कृति की दुरालोचना से तिलमिला उठे। उन्होंने आवेश को रोक. विवेक-पूर्ण स्वर में कहा- 'मैंने तुझे ही पहले रचा, यही मेरो एक भूल है। प्रतीत होना है कि तेरो बुद्धि पण हो गई है। तभी तो तुझे मेरी कृतियों में दोष ही दोष नजर आते हैं।" ब्रह्मा के मुख से सहज हो निकल पड़ा"विद्वांसो यदि मम दोषमुगिरेयुः यद्वा ते गुण-गणमेव कीर्तयेयुः । तत् तुल्यं बत मनुते मनो मदीयम्, तत् कष्टं पुनरेव माह मन्दः ॥" "कला का पारखी विद्वान् यदि मेरी कृतियों में दोष हो दोष अथवा गुण ही गुण देखे, तो मेरा मन सन्तोष पा सकता है। पर एक मूर्ख यदि मेरे दोष को भी गुण कहता है, तो वह मुझे अखरता है--बुरा लगता है।" -लोक-कथा के आधार पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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